महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है।
यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। श्रीमद्भगवद्गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं।

[०१-०८] ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की आवश्यकता [०९-१६] यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता तथा यज्ञ की महिमा का वर्णन [१७-२४] ज्ञानवानऔर भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता [२५-३५] अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा [३६-४३] पापके कारणभूत कामरूपी शत्रु को नष्ट करने का उपदेश
[०१-१५] योग परंपरा, भगवान के जन्म कर्म की दिव्यता, भक्त लक्षणभगवत्स्वरूप [१६-१८] कर्म-विकर्म एवं अकर्म की व्याख्या [१९-२३] कर्म में अकर्मता-भाव, नैराश्य-सुख, यज्ञ की व्याख्या [२४-३३] फलसहित विभिन्न यज्ञों का वर्णन [३४-४२] ज्ञान की महिमा तथा अर्जुन को कर्म करने की प्रेरणा
[०१-०६] ज्ञानयोग और कर्मयोग की एकता, सांख्य पर का विवरण और कर्मयोगकी वरीयता [०७-१२] सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा [१३-२६] ज्ञानयोग का विषय [२७-२९] भक्ति सहित ध्यानयोग तथा भय, क्रोध, यज्ञ आदि का वर्णन
[०१-०४] कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ के लक्षण, काम-संकल्प-त्याग कामहत्व [०५-१०] आत्म-उद्धार की प्रेरणा और भगवत्प्राप्त पुरुष के लक्षण एवं एकांतसाधना का महत्व [११-१५] आसन विधि, परमात्मा का ध्यान, योगी के चार प्रकार [१६-३२] विस्तार से ध्यान योग का विषय [३३-३६] मन के निग्रह का विषय [३७-४७] योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा
[०१-०७] विज्ञान सहित ज्ञान का विषय,इश्वर की व्यापकता [०८-१२] संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का कथन [१३-१९] आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा [२०-२३] अन्य देवताओं की उपासना और उसका फल [२४-३०] भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जाननेवालों की महिमा
[०१-०७] ब्रह्म, अध्यात्म औरकर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर [०८-२२] भगवानका परम धाम और भक्ति के सोलह प्रकार [२३-२८] शुक्लऔर कृष्ण मार्ग का वर्णन
[०१-०६] परम गोपनीय ज्ञानोपदेश, उपासनात्मक ज्ञान, ईश्वर का विस्तार [०७-१०] जगत की उत्पत्ति का विषय [११-१५] भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा औरदेवी प्रकृति वालों के भगवद् भजन का प्रकार [१६-१९] सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन [२०-२५] सकाम और निष्काम उपासना का फल [२६-३४] निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा
[०१-०७] भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल [०८-११] फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का वर्णन [१२-१८] अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहनेके लिए प्रार्थना [१९-४२] भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन
[०१-०४] विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना [०५-०८] भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन [०९-१४] संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन [१५-३१] अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुतिकरना [३२-३४] भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिएउत्साहित करना [३५-४६] भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप कादर्शन कराने के लिए प्रार्थना [४७-५०] भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का वर्णन तथाचतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना [५१-५५] बिना अनन्य भक्तिके चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन
[०१-१२] साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय औरभगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन [१३-२०] भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण
[०१-१८] ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन [१९-३४] ज्ञानसहितप्रकृति-पुरुष का वर्णन
[०१-०४] ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत्‌ की उत्पत्ति [०५-१८] सत्, रज, तम- तीनों गुणों का वर्णन [१९-२७] भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण
[०१-०६] संसाररूपी अश्वत्वृक्ष का स्वरूप और भगवत्प्राप्ति का उपाय [०७-११] इश्वरांश जीव, जीव तत्व के ज्ञाता और अज्ञाता [१२-१५] प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का वर्णन [१६-२०] क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विश्लेषण
[०१-०५] फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन [०६-२०] आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन [२१-२४] शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों केलिए प्रेरणा
[०१-०६] श्रद्धा और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय [०७-२२] आहार, यज्ञ, तप और दान केपृथक-पृथक भेद [२३-२८] ॐतत्सत्‌ के प्रयोग की व्याख्या
[०१-१२] त्याग का विषय [१३-१८] कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन [१९-४०] तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता,बुद्धि,धृतिऔर सुख के पृथक-पृथक भेद [४१-४८] फल सहित वर्ण धर्म का विषय [४९-५५] ज्ञाननिष्ठा का विषय [५६-६६] भक्ति सहित कर्मयोग का विषय [६७-७८] श्री गीताजी का माहात्म्य