आश्वमेधिकपर्व ~ चतुर्दश पर्व
महाभारत के आश्वमेधिकपर्व में ३ उपपर्व, ११३ अध्याय एवम कुल ३३२० श्लोक हैं।
१. अश्वमेधपर्व
१. युधिष्ठिरका शोकमग्न होकर गिरना और धृतराष्ट्रका उन्हें समझाना
२. श्रीकृष्ण और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना
३. व्यासजीका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये धनकी प्राप्तिका उपाय बताते हुए संवर्त और मरुत्तका प्रसंग उपस्थित करना
४. मरुत्तके पूर्वजोंका परिचय देते हुए व्यासजीके द्वारा उनके गुण, प्रभाव एवं यज्ञका दिग्दर्शन
५. इन्द्रकी प्रेरणासे बृहस्पतिजीका मनुष्यको यज्ञ न करानेकी प्रतिज्ञा करना
६. नारदजीकी आज्ञासे मरुत्तका उनकी बतायी हुई युक्तिके अनुसार संवर्तसे भेंट करना
७. संवर्त और मरुत्तकी बातचीत, मरुत्तके विशेष आग्रहपर संवर्तका यज्ञ करानेकी स्वीकृति देना
८. संवर्तका मरुत्तको सुवर्णकी प्राप्तिके लिये महादेवजीकी नाममयी स्तुतिका उपदेश और धनकी प्राप्ति तथा मरुत्तकी सम्पत्तिसे बृहस्पतिका चिन्तित होना
९. बृहस्पतिका इन्द्रसे अपनी चिन्ताका कारण बताना, इन्द्रकी आज्ञासे अग्निदेवका मरुत्तके पास उनका संदेश लेकर जाना और संवर्तके भयसे पुनः लौटकर इन्द्रसे ब्रह्मबलकी श्रेष्ठता बताना
१०. इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्र-बलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना
११. श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको इन्द्रद्वारा शरीरस्थ वृत्रासुरका संहार करनेका इतिहास सुनाकर समझाना
१२. भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको मनपर विजय करनेके लिये आदेश
१३. श्रीकृष्णद्वारा ममताके त्यागका महत्त्व, काम-गीताका उल्लेख और युधिष्ठिरको यज्ञके लिये प्रेरणा करना
१४. ऋषियोंका अन्तर्धान होना, भीष्म आदिका श्राद्ध करके युधिष्ठिर आदिका हस्तिनापुरमें जाना तथा युधिष्ठिरके धर्म-राज्यका वर्णन
१५. भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनसे द्वारका जानेका प्रस्ताव करना
२. अनुगीतापर्व
१६. अर्जुनका श्रीकृष्णसे गीताका विषय पूछना और श्रीकृष्णका अर्जुनसे सिद्ध, महर्षि एवं काश्यपका संवाद सुनाना
१७. काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन
१८. जीवके गर्भ-प्रवेश, आचार-धर्म, कर्म-फलकी अनिवार्यता तथा संसारसे तरनेके उपायका वर्णन
१९. गुरु-शिष्यके संवादमें मोक्षप्राप्तिके उपायका वर्णन
२०. ब्राह्मणगीता - एक ब्राह्मणका अपनी पत्नीसे ज्ञानयज्ञका उपदेश करना
२१. दस होताओंसे सम्पन्न होनेवाले यज्ञका वर्णन तथा मन और वाणीकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
२२. मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होता ओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन
२३. प्राण, अपान आदिका संवाद और ब्रह्माजीका सबकी श्रेष्ठता बतलाना
२४. देवर्षि नारद और देवमतका संवाद एवं उदानके उत्कृष्ट रूपका वर्णन
२५. चातुर्होम यज्ञका वर्णन
२६. अन्तर्यामीकी प्रधानता
२७. अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन
२८. ज्ञानी पुरुषकी स्थिति तथा अध्वर्यु और यतिका संवाद
२९. परशुरामजीके द्वारा क्षत्रिय कुलका संहार
३०. अलर्कके ध्यान-योगका उदाहरण देकर पितामहोंका परशुरामजीको समझाना और परशुरामजीका तपस्याके द्वारा सिद्धि प्राप्त करना
३१. राजा अम्बरीषकी गायी हुई आध्यात्मिक स्वराज्यविषयक गाथा
३२. ब्राह्मण-रूपधारी धर्म और जनकका ममत्वत्याग विषयक संवाद
३३. ब्राह्मणका पत्नीके प्रति अपने ज्ञाननिष्ठ स्वरूपका परिचय देना
३४. भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा ब्राह्मण, ब्राह्मणी और क्षेत्रज्ञका रहस्य बतलाते हुए ब्राह्मण-गीताका उपसंहार
३५. श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनसे मोक्ष-धर्मका वर्णन - गुरु और शिष्यके संवादमें ब्रह्मा और महर्षियोंके प्रश्नोत्तर
३६. ब्रह्माजीके द्वारा तमोगुणका, उसके कार्यका और फलका वर्णन
३७. रजोगुणके कार्यका वर्णन और उसके जाननेका फल
३८. सत्त्वगुणके कार्यका वर्णन और उसके जाननेका फल
३९. सत्त्व आदि गुणोंका और प्रकृतिके नामोंका वर्णन
४०. महत्तत्त्वके नाम और परमात्मतत्त्वको जाननेकी महिमा
४१. अहंकारकी उत्पत्ति और उसके स्वरूपका वर्णन
४२. अहंकारसे पंच महाभूतों और इन्द्रियोंकी सृष्टि, अध्यात्म, अधिभूत और अधिदैवतका वर्णन तथा निवृत्तिमार्गका उपदेश
४३. चराचर प्राणियोंके अधिपतियोंका, धर्म आदिके लक्षणोंका और विषयोंकी अनुभूतिके साधनोंका वर्णन तथा क्षेत्रज्ञकी विलक्षणता
४४. सब पदार्थोंके आदि-अन्तका और ज्ञानकी नित्यताका वर्णन
४५. देहरूपी कालचक्रका तथा गृहस्थ और ब्राह्मणके धर्मका कथन
४६. ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासीके धर्मका वर्णन
४७. मुक्तिके साधनोंका, देहरूपी वृक्षका तथा ज्ञान खड्गसे उसे काटनेका वर्णन
४८. आत्मा और परमात्माके स्वरूपका विवेचन
४९. धर्मका निर्णय जाननेके लिये ऋषियोंका प्रश्न
५०. सत्त्व और पुरुषकी भिन्नता, बुद्धिमान्की प्रशंसा, पंचभूतोंके गुणोंका विस्तार और परमात्माकी श्रेष्ठताका वर्णन
५१. तपस्याका प्रभाव, आत्माका स्वरूप और उसके ज्ञानकी महिमा तथा अनुगीताका उपसंहार
५२. श्रीकृष्णका अर्जुनके साथ हस्तिनापुर जाना और वहाँ सबसे मिलकर युधिष्ठिरकी आज्ञा ले सुभद्राके साथ द्वारकाको प्रस्थान करना
५३. मार्गमें श्रीकृष्णसे कौरवोंके विनाशकी बात सुनकर उत्तंकमुनिका कुपित होना और श्रीकृष्णका उन्हें शान्त करना
५४. भगवान् श्रीकृष्णका उत्तंकसे अध्यात्मतत्त्वका वर्णन करना तथा दुर्योधनके अपराधको कौरवोंके विनाशका कारण बतलाना
५५. श्रीकृष्णका उत्तंक मुनिको विश्वरूपका दर्शन कराना और मरुदेशमें जल प्राप्त होनेका वरदान देना
५६. उत्तंककी गुरुभक्तिका वर्णन, गुरुपुत्रीके साथ उत्तंकका विवाह, गुरुपत्नीकी आज्ञासे दिव्यकुण्डल लानेके लिये उत्तंकका राजा सौदासके पास जाना
५७. उत्तंकका सौदाससे उनकी रानीके कुण्डल माँगना और सौदासके कहनेसे रानी मदयन्तीके पास जाना
५८. कुण्डल लेकर उत्तंकका लौटना, मार्गमें उन कुण्डलोंका अपहरण होना तथा इन्द्र और अग्निदेवकी कृपासे फिर उन्हें पाकर गुरुपत्नीको देना
५९. भगवान् श्रीकृष्णका द्वारकामें जाकर रैवतक पर्वतपर महोत्सवमें सम्मिलित होना और सबसे मिलना
६०. वसुदेवजीके पूछनेपर श्रीकृष्णका उन्हें महाभारत युद्धका वृत्तान्त संक्षेपसे सुनाना
६१. श्रीकृष्णका सुभद्राके कहनेसे वसुदेवजीको अभिमन्युवधका वृत्तान्त सुनाना
६२. वसुदेव आदि यादवोंका अभिमन्युके निमित्त श्राद्ध करना तथा व्यासजीका उत्तरा और अर्जुनको समझाकर युधिष्ठिरको अश्वमेधयज्ञ करनेकी आज्ञा देना
६३. युधिष्ठिरका अपने भाइयोंके साथ परामर्श करके सबको साथ ले धन ले आनेके लिये प्रस्थान करना
६४. पाण्डवोंका हिमालयपर पहुँचकर वहाँ पड़ाव डालना और रातमें उपवासपूर्वक निवास करना
६५. ब्राह्मणोंकी आज्ञासे भगवान् शिव और उनके पार्षद आदिकी पूजा करके युधिष्ठिरका उस धनराशिको खुदवाकर अपने साथ ले जाना
६६. श्रीकृष्णका हस्तिनापुरमें आगमन और उत्तराके मृत बालकको जिलानेके लिये कुन्तीकी उनसे प्रार्थना
६७. परीक्षित्को जिलानेके लिये सुभद्राकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना
६८. श्रीकृष्णका प्रसूतिकागृहमें प्रवेश, उत्तराका विलाप और अपने पुत्रको जीवित करनेके लिये प्रार्थना
६९. उत्तराका विलाप और भगवान् श्रीकृष्णका उसके मृत बालकको जीवन दान देना
७०. श्रीकृष्णद्वारा राजा परीक्षितका नामकरण तथा पाण्डवोंका हस्तिनापुरके समीप आगमन
७९. भगवान् श्रीकृष्ण और उनके साथियोंद्वारा पाण्डवोंका स्वागत, पाण्डवोंका नगरमें आकर सबसे मिलना और व्यासजी तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको यज्ञके लिये आज्ञा देना
७२. व्यासजीकी आज्ञासे अश्वकी रक्षाके लिये अर्जुनकी, राज्य और नगरकी रक्षाके लिये भीमसेन और नकुलकी तथा कुटुम्ब-पालनके लिये सहदेवकी नियुक्ति
७३. सेनासहित अर्जुनके द्वारा अश्वका अनुसरण
७४. अर्जुनके द्वारा त्रिगर्तोंकी पराजय
७५. अर्जुनका प्राग्ज्योतिषपुरके राजा वज्रदत्तके साथ युद्ध
७६. अर्जुनके द्वारा वज्रदत्तकी पराजय
७७. अर्जुनका सैन्धवोंके साथ युद्ध
७८. अर्जुनका सैन्धवोंके साथ युद्ध और दुःशलाके अनुरोधसे उसकी समाप्ति
७९. अर्जुन और बभ्रुवाहनका युद्ध एवं अर्जुनकी मृत्यु
८०. चित्रांगदाका विलाप, मूर्च्छासे जगनेपर बभ्रुवाहनका शोकोद्गार और उलूपीके प्रयत्नसे संजीवनीमणिके द्वारा अर्जुनका पुनः जीवित होना
८१. उलूपीका अर्जुनके पूछनेपर अपने आगमनका कारण एवं अर्जुनकी पराजयका रहस्य बताना, पुत्र और पत्नीसे विदा लेकर पार्थका पुनः अश्वके पीछे जाना
८२. मगधराज मेघसन्धिकी पराजय
८३. दक्षिण और पश्चिम समुद्रके तटवर्ती देशोंमें होते हुए अश्वका द्वारका, पंचनद एवं गान्धार देशमें प्रवेश
८४. शकुनिपुत्रकी पराजय
८५. यज्ञभूमिकी तैयारी, नाना देशोंसे आये हुए राजाओंका यज्ञकी सजावट और आयोजन देखना
८६. राजा युधिष्ठिरका भीमसेनको राजाओंकी पूजा करनेका आदेश और श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे अर्जुनका संदेश कहना
८७. अर्जुनके विषयमें श्रीकृष्ण और युधिष्ठिरकी बातचीत, अर्जुनका हस्तिनापुरमें जाना तथा उलूपी और चित्रांगदाके साथ बभ्रुवाहनका आगमन
८८. उलूपी और चित्रांगदाके सहित बभ्रुवाहनका रत्न आभूषण आदिसे सत्कार तथा अश्वमेधयज्ञका आरम्भ
८९. युधिष्ठिरका ब्राह्मणोंको दक्षिणा देना और राजाओंको भेंट देकर विदा करना
९०. युधिष्ठिरके यज्ञमें एक नेवलेका उञ्छ-वृत्तिधारी ब्राह्मणके द्वारा किये गये सेरभर सत्तूदानकी महिमा उस अश्वमेधयज्ञसे भी बढ़कर बतलाना
९९. हिंसामिश्रित यज्ञ और धर्मकी निन्दा
९२. महर्षि अगस्त्यके यज्ञकी कथा
३. वैष्णवधर्मपर्व
९३. युधिष्ठिरका वैष्णवधर्मविषयक प्रश्न और भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा धर्मका तथा अपनी महिमाका वर्णन
९४. चारों वर्णोंके कर्म और उनके फलोंका वर्णन तथा धर्मकी वृद्धि और पापके क्षय होनेका उपाय
९५. व्यर्थ जन्म, दान और जीवनका वर्णन, सात्त्विक दानोंका लक्षण, दानका योग्य पात्र और ब्राह्मणकी महिमा
९६. बीज और योनिकी शुद्धि तथा गायत्री जपकी और ब्राह्मणोंकी महिमाका और उनके तिरस्कारके भयानक फलका वर्णन
९७. यमलोकके मार्गका कष्ट और उससे बचनेके उपाय
९८. जल-दान, अन्न-दान और अतिथि सत्कारका माहात्म्य
९९. भूमिदान, तिलदान और उत्तम ब्राह्मणकी महिमा
१००. अनेक प्रकारके दानोंकी महिमा
१०१. पंचमहायज्ञ, विधिवत् स्नान और उसके अंगभूत कर्म, भगवान् के प्रिय पुष्प तथा भगवद्भक्तोंका वर्णन
१०२. कपिला गौका तथा उसके दानका माहात्म्य और कपिला गौके दस भेद
१०३. कपिला गौमें देवताओंके निवासस्थानका तथा उसके माहात्म्यका, अयोग्य ब्राह्मणका, नरकमें ले जानेवाले पापोंका तथा स्वर्गमें ले जानेवाले पुण्योंका वर्णन
१०४. ब्रह्महत्याके समान पापका, अन्नदानकी प्रशंसाका, जिनका अन्न वर्जनीय है, उन पापियोंका, दानके फलका और धर्मकी प्रशंसाका वर्णन
१०५. धर्म और शौचके लक्षण, संन्यासी और अतिथिके सत्कारके उपदेश, शिष्टाचार, दानपात्र ब्राह्मण तथा अन्नदानकी प्रशंसा
१०६. भोजनकी विधि, गौओंको घास डालनेका विधान और तिलका माहात्म्य तथा ब्राह्मणके लिये तिल और गन्ना पेरनेका निषेध
१०७. आपद्धर्म, श्रेष्ठ और निन्द्य ब्राह्मण, श्राद्धका उत्तमकाल और मानव-धर्म-सारका वर्णन
१०८. अग्निके स्वरूपमें अग्निहोत्रकी विधि तथा उसके माहात्म्यका वर्णन
१०९. चान्द्रायणव्रतकी विधि, प्रायश्चित्तरूपमें उसके करनेका विधान तथा महिमाका वर्णन
११०. सर्वहितकारी धर्मका वर्णन, द्वादशीव्रतका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके द्वारा भगवान्की स्तुति
१११. विषुवयोग और ग्रहण आदिमें दानकी महिमा, पीपलका महत्त्व, तीर्थभूत गुणोंकी प्रशंसा और उत्तम प्रायश्चित्त
११२. उत्तम और अधम ब्राह्मणोंके लक्षण, भक्त, गौ और पीपलकी महिमा
११३. भगवान्के उपदेशका उपसंहार और द्वारकागमन