महाभारत के सभापर्व में १० उपपर्व, ८१ अध्याय एवम कुल २५११ श्लोक हैं।

१. भगवान् श्रीकृष्णकी आज्ञाके अनुसार भयासुद्वारा सभाभवन बनानेकी तैयारी
२. श्रीकृष्णकी द्वारकायात्रा
३. मयासुरका भीमसेन और अर्जुनको गदा और शंख लाकर देना तथा उसके द्वारा अद्भुत सभाका निर्माण
४. मयद्वारा निर्मित सभाभवनमें धर्मराज युधिष्ठिरका प्रवेश तथा सभामें स्थित महर्षियों और राजाओं आदिका वर्णन
५. नारदजीका युधिष्ठिरकी सभामें आगमन और प्रश्नके रूपमें युधिष्ठिरको शिक्षा देना
६. युधिष्ठिरकी दिव्य सभाओंके विषयमें जिज्ञासा
७. इन्द्रसभाका वर्णन
८. यमराजकी सभाका वर्णन
९. वरुणकी सभाका वर्णन
१०. कुबेरकी सभाका वर्णन
११. ब्रह्माजीकी सभाका वर्णन
१२. राजा हरिश्चन्द्रका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके प्रति राजा पाण्डुका संदेश
१३. युधिष्ठिरका राजसूयविषयक संकल्प और उसके विषयमें भाइयों, मन्त्रियों, मुनियों तथा श्रीकृष्णसे सलाह लेना
१४. श्रीकृष्णकी राजसूययज्ञके लिये सम्मति
१५. जरासंधके विषयमें राजा युधिष्ठिर, भीम और श्रीकृष्णकी बातचीत
१६. जरासंधको जीतनेके विषयमें युधिष्ठिरके उत्साहहीन होनेपर अर्जुनका उत्साहपूर्ण उद्गार
१७. श्रीकृष्णके द्वारा अर्जुनकी बातका अनुमोदन तथा युधिष्ठिरको जरासंधकी उत्पत्तिका प्रसंग सुनाना
१८. जरा राक्षसीका अपना परिचय देना और उसीके नामपर बालकका नामकरण होना
१९. चण्डकौशिक मुनिके द्वारा जरासंधका भविष्यकथन तथा पिताके द्वारा उसका राज्याभिषेक करके वनमें जाना
२०. युधिष्ठिरके अनुमोदन करनेपर श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेनकी मगध-यात्रा
२१. श्रीकृष्णद्वारा मगधकी राजधानीकी प्रशंसा, चैत्यक पर्वतशिखर और नगाड़ोंको तोड़-फोड़कर तीनोंका नगर एवं राज-भवनमें प्रवेश तथा श्रीकृष्ण और जरासंधका संवाद
२२. जरासंध और श्रीकृष्णका संवाद तथा जरासंधकी युद्धके लिये तैयारी एवं जरासंधका श्रीकृष्णके साथ वैर होनेके कारणका वर्णन
२३. जरासंधका भीमसेनके साथ युद्ध करनेका निश्चय, भीम और जरासंधका भयानक युद्ध तथा जरासंधकी थकावट
२४. भीमके द्वारा जरासंधका वध, बंदी राजाओंकी मुक्ति, श्रीकृष्ण आदिका भेंट लेकर इन्द्रप्रस्थमें आना और वहाँसे श्रीकृष्णका द्वारका जाना
२५. अर्जुन आदि चारों भाइयोंकी दिग्विजयके लिये यात्रा
२६. अर्जुनके द्वारा अनेक देशों, राजाओं तथा भगदत्तकी पराजय
२७. अर्जुनका अनेक पर्वतीय देशोंपर विजय पाना
२८. किम्पुरुष, हाटक तथा उत्तरकुरुपर विजय प्राप्त करके अर्जुनका इन्द्रप्रस्थ लौटना
२९. भीमसेनका पूर्व दिशाको जीतनेके लिये प्रस्थान और विभिन्न देशोंपर विजय पाना
३०. भीमका पूर्व दिशाके अनेक देशों तथा राजाओंको जीतकर भारी धन-सम्पत्तिके साथ इन्द्रप्रस्थमें लौटना
३१. सहदेवके द्वारा दक्षिण दिशाकी विजय
३२. नकुलके द्वारा पश्चिम दिशाकी विजय
३३. युधिष्ठिरके शासनकी विशेषता, श्रीकृष्णकी आज्ञासे युधिष्ठिरका राजसूययज्ञकी दीक्षा लेना तथा राजाओं, ब्राह्मणों एवं सगे-सम्बन्धियोंको बुलानेके लिये निमन्त्रण भेजना
३४. युधिष्ठिरके यज्ञमें सब देशके राजाओं, कौरवों तथा यादवोंका आगमन और उन सबके भोजन-विश्राम आदिकी सुव्यवस्था
३५. राजसूययज्ञका वर्णन
३६. राजसूययज्ञमें ब्राह्मणों तथा राजाओंका समागम, श्रीनारदजीके द्वारा श्रीकृष्ण-महिमाका वर्णन और भीष्मजीकी अनुमतिसे श्रीकृष्णकी अग्रपूजा
३७. शिशुपालके आक्षेपपूर्ण वचन
३८. युधिष्ठिरका शिशुपालको समझाना और भीष्मजीका उसके आक्षेपोंका उत्तर देना
३९. सहदेवकी राजाओंको चुनौती तथा क्षुब्ध हुए शिशुपाल आदि नरेशोंका युद्धके लिये उद्यत होना
४०. युधिष्ठिरकी चिन्ता और भीष्मजीका उन्हें सान्त्वना देना
४१. शिशुपालद्वारा भीष्मकी निन्दा
४२. शिशुपालकी बातोंपर भीमसेनका क्रोध और भीष्मजीका उन्हें शान्त करना
४३. भीष्मजीके द्वारा शिशुपालके जन्मके वृत्तान्तका वर्णन
४४. भीष्मकी बातोंसे चिढ़े हुए शिशुपालका उन्हें फटकारना तथा भीष्मका श्रीकृष्णसे युद्ध करनेके लिये समस्त राजाओंको चुनौती देना
४५. श्रीकृष्णके द्वारा शिशुपालका वध, राजसूययज्ञकी समाप्ति तथा सभी ब्राह्मणों, राजाओं और श्रीकृष्णका स्वदेशगमन
४६. व्यासजीकी भविष्यवाणीसे युधिष्ठिरकी चिन्ता और समत्वपूर्ण बर्ताव करनेकी प्रतिज्ञा
४७. दुर्योधनका मयनिर्मित सभाभवनको देखना और पग-पगपर भ्रमके कारण उपहासका पात्र बनना तथा युधिष्ठिरके वैभवको देखकर उसका चिन्तित होना
४८. पाण्डवोंपर विजय प्राप्त करनेके लिये शकुनि और दुर्योधनकी बातचीत
४९. धृतराष्ट्रके पूछनेपर दुर्योधनका अपनी चिन्ता बताना और छूतके लिये धृतराष्ट्रसे अनुरोध करना एवं धृतराष्ट्रका विदुरको इन्द्रप्रस्थ जानेका आदेश
५०. दुर्योधनका धृतराष्ट्रको अपने दुःख और चिन्ताका कारण बताना
५१. युधिष्ठिरको भेंटमें मिली हुई वस्तुओंका दुर्योधनद्वारा वर्णन
५२. युधिष्ठिरको भेंटमें मिली हुई वस्तुओंका दुर्योधनद्वारा वर्णन
५३. दुर्योधनद्वारा युधिष्ठिरके अभिषेकका वर्णन
५४. धृतराष्ट्रका दुर्योधनको समझाना
५५. दुर्योधनका धृतराष्ट्रको उकसाना
५६. धृतराष्ट्र और दुर्योधनकी बातचीत, द्यूतक्रीड़ाके लिये सभानिर्माण और धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरको बुलानेके लिये विदुरको आज्ञा देना
५७. विदुर और धृतराष्ट्रकी बातचीत
५८. विदुर और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा युधिष्ठिरका हस्तिनापुरमें जाकर सबसे मिलना
५९. जूएके अनौचित्यके सम्बन्धमें युधिष्ठिर और शकुनिका संवाद
६०. द्यूतक्रीडाका आरम्भ
६१. जूएमें शकुनिके छलसे प्रत्येक दाँवपर युधिष्ठिरकी हार
६२. धृतराष्ट्रको विदुरकी चेतावनी
६३. विदुरजीके द्वारा जूएका घोर विरोध
६४. दुर्योधनका विदुरको फटकारना और विदुरका उसे चेतावनी देना
६५. युधिष्ठिरका धन, राज्य, भाइयों तथा द्रौपदी-सहित अपनेको भी हारना
६६. विदुरका दुर्योधनको फटकारना
६७. प्रातिकामीके बुलानेसे न आनेपर दुःशासनका सभामें द्रौपदीको केश पकड़कर घसीटकर लाना एवं सभासदोंसे द्रौपदीका प्रश्न
६८. भीमसेनका क्रोध एवं अर्जुनका उन्हें शान्त करना, विकर्णकी धर्मसंगत बातका कर्णके द्वारा विरोध, द्रौपदीका चीरहरण एवं भगवानद्वारा उसकी लज्जारक्षा तथा विदुरके द्वारा प्रह्लादका उदाहरण देकर सभासदोंको विरोधके लिये प्रेरित करना
६९. द्रौपदीका चेतावनीयुक्त विलाप एवं भीष्मका वचन
७०. दुर्योधनके छल-कपटयुक्त वचन और भीमसेनका रोषपूर्ण उद्गार
७१. कर्ण और दुर्योधनके वचन, भीमसेनकी प्रतिज्ञा, विदुरकी चेतावनी और द्रौपदीको धृतराष्ट्रसे वरप्राप्ति
७२. शत्रुओंको मारनेके लिये उद्यत हुए भीमको युधिष्ठिरका शान्त करना
७३. धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरको सारा धन लौटाकर एवं समझा-बुझाकर इन्द्रप्रस्थ जानेका आदेश देना
७४. दुर्योधनका धृतराष्ट्रसे अर्जुनकी वीरता बतलाकर पुनः द्यूतक्रीड़ाके लिये पाण्डवोंको बुलानेका अनुरोध और उनकी स्वीकृति
७५. गान्धारीकी धृतराष्ट्रको चेतावनी और धृतराष्ट्रका अस्वीकार करना
७६. सबके मना करनेपर भी धृतराष्ट्रकी आज्ञासे युधिष्ठिरका पुनः जूआ खेलना और हारना
७७. दुःशासनद्वारा पाण्डवोंका उपहास एवं भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेवकी शत्रुओं को मारनेके लिये भीषण प्रतिज्ञा
७८. युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र आदिसे विदा लेना, विदुरका कुन्तीको अपने यहाँ रखनेका प्रस्ताव और पाण्डवोंको धर्मपूर्वक रहनेका उपदेश देना
७९. द्रौपदीका कुन्तीसे विदा लेना तथा कुन्तीका विलाप एवं नगरके नर-नारियोंका शोकातुर होना
८०. वनगमनके समय पाण्डवोंकी चेष्टा और प्रजाजनोंकी शोकातुरताके विषयमें धृतराष्ट्र तथा विदुरका संवाद और शरणागत कौरवोंको द्रोणाचार्यका आश्वासन
८१. धृतराष्ट्रकी चिन्ता और उनका संजयके साथ वार्तालाप