महाभारत के द्रोणपर्व में ८ उपपर्व, २०२ अध्याय एवम कुल ६६९८ श्लोक हैं।

१. भीष्मजीके धराशायी होनेसे कौरवोंका शोक तथा उनके द्वारा कर्णका स्मरण
२. कर्णकी रणयात्रा
३. भीष्मजीके प्रति कर्णका कथन
४. भीष्मजीका कर्णको प्रोत्साहन देकर युद्धके लिये भेजना तथा कर्णके आगमन से कौरवोंका हर्षोल्लास
५. कर्णका दुर्योधनके समक्ष सेनापति पदके लिये द्रोणाचार्यका नाम प्रस्तावित
६. दुर्योधनका द्रोणाचार्य से सेनापति होनेके लिये प्रार्थना करना
७. द्रोणाचार्यका सेनापतिके पदपर अभिषेक, कौरव पाण्डव सेनाओंका युद्ध और द्रोणका पराक्रम
८. द्रोणाचार्यके पराक्रम और वधका संक्षिप्त समाचार
९. द्रोणाचार्यकी मृत्युका समाचार सुनकर धृतराष्ट्रका शोक करना
१०. राजा धृतराष्ट्रका शोकसे व्याकुल होना और संजयसे युद्धविषयक प्रश्न
११. धृतराष्ट्रका भगवान् श्रीकृष्णकी संक्षिप्त लीलाओंका वर्णन करते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महिमा बताना
१२. दुर्योधनका वर माँगना और द्रोणाचार्यका युधिष्ठिरको अर्जुनकी अनुपस्थितिमें जीवित पकड़ लानेकी प्रतिज्ञा करना
१३. अर्जुनका युधिष्ठिरको आश्वासन देना तथा युद्धमें द्रोणाचार्यका पराक्रम
१४. द्रोणका पराक्रम, कौरव-पाण्डववीरोंका द्वन्द्वयुद्ध, रणनदीका वर्णन तथा अभिमन्युकी वीरता
१५. शल्यके साथ भीमसेनका युद्ध तथा शल्यकी पराजय
१६. वृषसेनका पराक्रम, कौरव-पाण्डववीरोंका तुमुलयुद्ध, द्रोणाचार्य के द्वारा पाण्डवपक्षके अनेक वीरोंका वध तथा अर्जुनकी विजय
१७. सुशर्मा आदि संशप्तकवीरोंकी प्रतिज्ञा तथा अर्जुनका युद्धके लिये उनके निकट जाना
१८. संशप्तक-सेनाओंके साथ अर्जुनका युद्ध और सुधन्वाका वध
१९. संशप्तकगणोंके साथ अर्जुनका घोर युद्ध
२०. द्रोणाचार्यके द्वारा गरुडव्यूहका निर्माण, युधिष्ठिरका भय, धृष्टद्युम्नका आश्वासन, धृष्टद्युम्न और दुर्मुखका युद्ध तथा संकुल युद्धमें गजसेनाका संहार
२१. द्रोणाचार्यके द्वारा सत्यजित, शतानीक, दृढसेन, क्षेम, वसुदान तथा पांचालराजकुमार आदिका वध और पाण्डव सेनाकी पराजय
२२. द्रोणके युद्धके विषयमें दुर्योधन और कर्णका संवाद
२३. पाण्डव-सेनाके महारथियोंके रथ, घोड़े, ध्वज तथा धनुषों का विवरण
२४. धृतराष्ट्रका अपना खेद प्रकाशित करते हुए युद्ध के समाचार पूछना
२५. कौरव-पाण्डव-सैनिकोंके द्वन्द्व-युद्ध
२६. भीमसेनका भगदत्तके हाथीके साथ युद्ध, हाथी और भगदत्तका भयानक पराक्रम
२७. अर्जुनका संशप्तक-सेनाके साथ भयंकर युद्ध और उसके अधिकांश भागका वध
२८. संशप्तकोंका संहार करके अर्जुनका कौरव सेनापर आक्रमण तथा भगदत्त और उनके हाथीका पराक्रम
२९. अर्जुन और भगदत्तका युद्ध, श्रीकृष्णद्वारा भगदत्तके वैष्णवास्त्रसे अर्जुनकी रक्षा तथा अर्जुनद्वारा हाथीसहित भगदत्तका वध
३०. अर्जुनके द्वारा वृषक और अचलका वध, शकुनिकी माया और उसकी पराजय तथा कौरव सेनाका पलायन
३१. कौरव पाण्डव सेनाओंका घमासान युद्ध तथा अश्वत्थामाके द्वारा राजा नीलका वध
३२. कौरव-पाण्डव-सेनाओंका घमासान युद्ध, भीमसेनका कौरव महारथियोंके साथ संग्राम, भयंकर संहार, पाण्डवोंका द्रोणाचार्यपर आक्रमण, अर्जुन और कर्णका युद्ध, कर्णके भाइयोंका वध तथा कर्ण और सात्यकिका संग्राम
३३. दुर्योधनका उपालम्भ, द्रोणाचार्यकी प्रतिज्ञा और अभिमन्युवधके वृत्तान्तका संक्षेपसे वर्णन
३४. संजयके द्वारा अभिमन्युकी प्रशंसा, द्रोणाचार्यद्वारा चक्रव्यूहका निर्माण प्रतिज्ञा
३५. युधिष्ठिर और अभिमन्युका संवाद तथा व्यूहभेदनके लिये अभिमन्युकी
३६. अभिमन्युका उत्साह तथा उसके द्वारा कौरवोंकी चतुरंगिणी सेनाका संहार
३७. अभिमन्युका पराक्रम, उसके द्वारा अश्मक पुत्रका वध, शल्यका मूर्च्छित होना और कौरव सेनाका पलायन
३८. अभिमन्युके द्वारा शल्यके भाईका वध तथा द्रोणाचार्यकी रथसेनाका पलायन
३९. द्रोणाचार्यके द्वारा अभिमन्युके पराक्रमकी प्रशंसा तथा दुर्योधनके आदेशसे दुःशासनका अभिमन्युके साथ युद्ध आरम्भ करना
४०. अभिमन्युके द्वारा दुःशासन और कर्णकी पराजय
४१. अभिमन्युके द्वारा कर्णके भाईका वध तथा कौरव सेनाका संहार और पलायन
४२. अभिमन्युके पीछे जानेवाले पाण्डवोंको जयद्रथका वरके प्रभावसे रोक देना
४३. पाण्डवोंके साथ जयद्रथका युद्ध और व्यूहद्वारको रोक रखना
४४. अभिमन्युका पराक्रम और उसके द्वारा वसातीय आदि अनेक योद्धाओंका वध
४५. अभिमन्युके द्वारा सत्यश्रवा, क्षत्रियसमूह, रुक्मरथ तथा उसके मित्रगणों और सैकड़ों राजकुमारोंका वध और दुर्योधनकी पराजय
४६. अभिमन्युके द्वारा लक्ष्मण तथा क्राथपुत्रका वध और सेनासहित छः महारथियोंका पलायन
४७. अभिमन्युका पराक्रम, छः महारथियोंके साथ घोर युद्ध और उसके द्वारा वृन्दारक तथा दस हजार अन्य राजाओंके सहित कोसलनरेश बृहद्बलका वध
४८. अभिमन्युद्वारा अश्वकेतु, भोज और कर्णके मन्त्री आदिका वध एवं छः महारथियोंके साथ घोर युद्ध और उन महारथियोंद्वारा अभिमन्युके धनुष, रथ, ढाल और तलवारका नाश
४९. अभिमन्युका कालिकेय, वसाति और कैकय रथियोंको मार डालना एवं छः महारथियोंके सहयोगसे अभिमन्युका वध और भागती हुई अपनी सेनाको युधिष्ठिरका आश्वासन देना
५०. तीसरे (तेरहवें) दिनके युद्धकी समाप्तिपर सेनाका शिविरको प्रस्थान एवं रणभूमिका वर्णन
५१. युधिष्ठिरका विलाप
५२. विलाप करते हुए युधिष्ठिरके पास व्यासजीका आगमन और अकम्पन-नारद-संवादकी प्रस्तावना करते हुए मृत्युकी उत्पत्तिका प्रसंग आरम्भ करना
५३. शंकर और ब्रह्माका संवाद, मृत्युकी उत्पत्ति तथा उसे समस्त प्रजाके संहारका कार्य सौंपा जाना
५४. मृत्युकी घोर तपस्या, ब्रह्माजीके द्वारा उसे वरकी प्राप्ति तथा नारद-अकम्पन-संवादका उपसंहार
५५. षोडशराजकीयोपाख्यानका आरम्भ, नारदजीकी कृपासे राजा सृजयको पुत्रकी प्राप्ति, दस्युओं द्वारा उसका वध तथा पुत्रशोकसंतप्त सृजयको नारदजीका मरुत्तका चरित्र सुनाना
५६. राजा सुहोत्रकी दानशीलता
५७. राजा पौरवके अद्भुत दानका वृत्तान्त
५८. राजा शिबिके यज्ञ और दानकी महत्ता
५९. भगवान् श्रीरामका चरित्र
६०. राजा भगीरथका चरित्र
६१. राजा दिलीपका उत्कर्ष
६२. राजा मान्धाताकी महत्ता
६३. राजा ययातिका उपाख्यान
६४. राजा अम्बरीषका चरित्र
६५. राजा शशबिन्दुका चरित्र
६६. राजा गयका चरित्र
६७. राजा रन्तिदेवकी महत्ता
६८. राजा भरतका चरित्र
६९. राजा पृथुका चरित्र
७०. परशुरामजीका चरित्र
७१. नारदजीका सृजयके पुत्रको जीवित करना और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाकर अन्तर्धान होना
७२. अभिमन्युकी मृत्युके कारण अर्जुनका विषाद और क्रोध
७३. युधिष्ठिरके मुखसे अभिमन्युवधका वृत्तान्त सुनकर अर्जुनकी जयद्रथको मारनेके लिये शपथपूर्ण प्रतिज्ञा
७४. जयद्रथका भय तथा दुर्योधन और द्रोणाचार्यका उसे आश्वासन देना
७५. श्रीकृष्णका अर्जुनको कौरवोंके जयद्रथकी रक्षाविषयक उद्योगका समाचार बताना
७६. अर्जुनके वीरोचित वचन
७७. नाना प्रकारके अशुभसूचक उत्पात, कौरव सेनामें भय और श्रीकृष्णका अपनी बहिन सुभद्राको आश्वासन देना
७८. सुभद्राका विलाप और श्रीकृष्णका सबको आश्वासन
७९. श्रीकृष्णका अर्जुनकी विजयके लिये रात्रिमें भगवान् शिवका पूजन करवाना, जागते हुए पाण्डव-सैनिकोंकी अर्जुनके लिये शुभाशंसा तथा अर्जुनकी सफलताके लिये श्रीकृष्णके दारुकके प्रति उत्साहभरे वचन
८०. स्वप्नमें भगवान् श्रीकृष्णके साथ शिवजीके समीप जाना और उनकी स्तुति करना
८१. अर्जुनको स्वप्नमें ही पुनः पाशुपतास्त्रकी प्राप्ति
८२. युधिष्ठिरका प्रातः काल उठकर स्नान और नित्यकर्म आदिसे निवृत्त हो ब्राह्मणोंको दान देना, वस्त्राभूषणोंसे विभूषित हो सिंहासनपर बैठना और वहाँ पधारे हुए भगवान् श्रीकृष्णका पूजन करना
८३. अर्जुनकी प्रतिज्ञाको सफल बनानेके लिये युधिष्ठिरकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना और श्रीकृष्णका उन्हें आश्वासन देना
८४. युधिष्ठिरका अर्जुनको आशीर्वाद, अर्जुनका स्वप्न सुनकर समस्त सुहृदोंकी प्रसन्नता, सात्यकि और श्रीकृष्णके साथ रथपर बैठकर अर्जुनकी रणयात्रा तथा अर्जुनके कहने से सात्यकिका युधिष्ठिरकी रक्षाके लिये जाना
८५. धृतराष्ट्रका विलाप
८६. संजयका धृतराष्ट्रको उपालम्भ
८७. कौरव सैनिकोंका उत्साह तथा आचार्य द्रोणके द्वारा चक्रशकटव्यूहका निर्माण
८८. कौरव-सेनाके लिये अपशकुन, दुर्मर्षणका अर्जुनसे लड़नेका उत्साह तथा अर्जुनका रणभूमिमें प्रवेश एवं शंखनाद
८९. अर्जुनके द्वारा दुर्मर्षणकी गजसेनाका संहार और समस्त सैनिकोंका पलायन
९०. अर्जुनके बाणोंसे हताहत होकर सेनासहित दुःशासनका पलायन
९१. अर्जुन और द्रोणाचार्यका वार्तालाप तथा युद्ध एवं द्रोणाचार्यको छोड़कर आगे बढ़े हुए अर्जुनका कौरव-सैनिकोंद्वारा प्रतिरोध
९२. अर्जुनका द्रोणाचार्य और कृतवर्माके साथ युद्ध करते हुए कौरव सेनामें प्रवेश तथा श्रुतायुधका अपनी गदासे और सुदक्षिणका अर्जुनद्वारा वध
९३. अर्जुनद्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु, म्लेच्छ-सैनिक और अम्बष्ठ आदिका वध
९४. दुर्योधनका उपालम्भ सुनकर द्रोणाचार्यका उसके शरीरमें दिव्य कवच बाँधकर उसीको अर्जुनके साथ युद्धके लिये भेजना
९५. द्रोण और धृष्टद्युम्नका भीषण संग्राम तथा उभय पक्षके प्रमुख वीरोंका परस्पर संकुल युद्ध
९६. दोनों पक्षोंके प्रधान वीरोंका द्वन्द्व-युद्ध
९७. द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्नका युद्ध तथा सात्यकिद्वारा धृष्टद्युम्नकी रक्षा
९८. द्रोणाचार्य और सात्यकिका अद्भुत युद्ध
९९. अर्जुनके द्वारा तीव्र गति से कौरव सेनामें प्रवेश, विन्द और अनुविन्दका वध तथा अद्भुत जलाशयका निर्माण
१००. श्रीकृष्णके द्वारा अश्वपरिचर्या तथा खा-पीकर हृष्ट-पुष्ट हुए अश्वोंद्वारा अर्जुनका पुनः शत्रुसेनापर आक्रमण करते हुए जयद्रथकी ओर बढ़ना
१०१. श्रीकृष्ण और अर्जुनको आगे बढ़ा देख कौरव सैनिकोंकी निराशा तथा दुर्योधनका युद्धके लिये आना
१०२. श्रीकृष्णका अर्जुनकी प्रशंसापूर्वक उसे प्रोत्साहन देना, अर्जुन और दुर्योधनका एक-दूसरेके सम्मुख आना, कौरव-सैनिकोंका भय तथा दुर्योधनका अर्जुनको ललकारना
१०३. दुर्योधन और अर्जुनका युद्ध तथा दुर्योधनकी पराजय
१०४. अर्जुनका कौरव महाराथियोंके साथ घोर युद्ध
१०५. अर्जुन तथा कौरव महारथियोंके ध्वजोंका वर्णन और नौ महारथियोंके साथ अकेले अर्जुनका युद्ध
१०६. द्रोण और उनकी सेनाके साथ पाण्डव सेनाका द्वन्द्व-युद्ध तथा द्रोणाचार्यके साथ युद्ध करते समय रथ भंग हो जानेपर युधिष्ठिरका पलायन
१०७. कौरव सेनाके क्षेमधूर्ति, वीरधन्वा, निरमित्र तथा व्याघ्रदत्तका वध और दुर्मुख एवं विकर्णकी पराजय
१०८. द्रौपदीपुत्रोंके द्वारा सोमदत्तकुमार शलका वध तथा भीमसेनके द्वारा अलम्बुषकी पराजय
१०९. घटोत्कचद्वारा अलम्बुषका वध और पाण्डव-सेनामें हर्ष-ध्वनि
११०. द्रोणाचार्य और सात्यकिका युद्ध तथा युधिष्ठिरका सात्यकिकी प्रशंसा करते हुए उसे अर्जुनकी सहायताके लिये कौरव सेनामें प्रवेश करनेका आदेश
१११. सात्यकि और युधिष्ठिरका संवाद
११२. सात्यकिकी अर्जुनके पास जानेकी तैयारी और सम्मानपूर्वक विदा होकर उनका प्रस्थान तथा साथ आते हुए भीमको युधिष्ठिरकी रक्षाके लिये लौटा देना
११३. सात्यकिका द्रोण और कृतवर्माके साथ युद्ध करते हुए काम्बोजोंकी सेनाके पास पहुँचना
११४. धृतराष्ट्रका विषादयुक्त वचन, संजयका धृतराष्ट्रको ही दोषी बताना, कृतवर्माका भीमसेन और शिखण्डीके साथ युद्ध तथा पाण्डव-सेनाकी पराजय
११५. सात्यकिके द्वारा कृतवर्माकी पराजय, त्रिगर्तोंकी गजसेनाका संहार और जलसंधका वध
११६. सात्यकिका पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्माकी पुनः पराजय
११७. सात्यकि और द्रोणाचार्यका युद्ध, द्रोणकी पराजय तथा कौरव सेनाका पलायन
११८. सात्यकिद्वारा सुदर्शनका वध
११९. सात्यकि और उनके सारथिका संवाद तथा सात्यकिद्वारा काम्बोजों और यवन आदिकी सेनाकी पराजय
१२०. सात्यकिद्वारा दुर्योधनकी सेनाका संहार तथा भाइयोंसहित दुर्योधनका पलायन
१२१. सात्यकिके द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छोंकी सेनाका संहार और दुःशासनका सेनासहित पलायन
१२२. द्रोणाचार्यका दुःशासनको फटकारना और द्रोणाचार्यके द्वारा वीरकेतु आदि पांचालोंका वध एवं उनका धृष्टद्युम्नके साथ घोर युद्ध, द्रोणाचार्यका मूर्च्छित होना, धृष्टद्युम्नका पलायन, आचार्यकी विजय
१२३. सात्यकिका घोर युद्ध और दुःशासनकी पराजय
१२४. कौरव-पाण्डव-सेनाका घोर युद्ध तथा पाण्डवोंके साथ दुर्योधनका संग्राम
१२५. द्रोणाचार्यके द्वारा बृहत्क्षत्र, धृष्टकेतु, जरासंधपुत्र सहदेव तथा धृष्टद्युम्नकुमार क्षत्रधर्माका वध और चेकितानकी पराजय
१२६. युधिष्ठिरका चिन्तित होकर भीमसेनको अर्जुन और सात्यकिका पता लगानेके लिये भेजना
१२७. भीमसेनका कौरवसेनामें प्रवेश, द्रोणाचार्यके सारथिसहित रथका चूर्ण कर देना तथा उनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रोंका वध, अवशिष्ट पुत्रोंसहित सेनाका पलायन
१२८. भीमसेनका द्रोणाचार्य और अन्य कौरव-योद्धाओंको पराजित करते हुए द्रोणाचार्यके रथको आठ बार फेंक देना तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनके समीप पहुँचकर गर्जना करना तथा युधिष्ठिरका प्रसन्न होकर अनेक प्रकारकी बातें सोचना
१२९. भीमसेन और कर्णका युद्ध तथा कर्णकी पराजय
१३०. दुर्योधनका द्रोणाचार्यको उपालम्भ देना, द्रोणाचार्यका उसे छूतका परिणाम दिखाकर युद्धके लिये वापस भेजना और उसके साथ युधामन्यु तथा उत्तमौजाका युद्ध
१३१. भीमसेनके द्वारा कर्णकी पराजय
१३२. भीमसेन और कर्णका घोर युद्ध
९३३. भीमसेन और कर्णका युद्ध, कर्णके सारथि सहित रथका विनाश तथा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जयका वध
१३४. भीमसेन और कर्णका युद्ध, धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुखका वध तथा कर्णका पलायन
१३५. धृतराष्ट्रका खेदपूर्वक भीमसेनके बलका वर्णन और अपने पुत्रोंकी निन्दा करना तथा भीमके द्वारा दुर्मर्षण आदि धृतराष्ट्रके पाँच पुत्रोंका वध
९३६. भीमसेन और कर्णका युद्ध, कर्णका पलायन, धृतराष्ट्रके सात पुत्रोंका वध तथा भीमका पराक्रम
१३७. भीमसेन और कर्णका युद्ध तथा दुर्योधनके सात भाइयोंका वध
१३८. भीमसेन और कर्णका भयंकर युद्ध
१३९. भीमसेन और कर्णका भयंकर युद्ध, पहले भीमकी और पीछे कर्णकी विजय, उसके बाद अर्जुनके बाणोंसे व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामाका पलायन
१४०. सात्यकिद्वारा राजा अलम्बुषका और दुःशासनके घोड़ोंका वध
१४१. सात्यकिका अद्भुत पराक्रम, श्रीकृष्णका अर्जुनको सात्यकिके आगमनकी सूचना देना और अर्जुनकी चिन्ता
१४२. भूरिश्रवा और सात्यकिका रोषपूर्वक सम्भाषण और युद्ध तथा सात्यकिका सिर काटनेके लिये उद्यत हुए भूरिश्रवाकी भुजाका अर्जुनद्वारा उच्छेद
१४३. भूरिश्रवाका अर्जुनको उपालम्भ देना, अर्जुनका उत्तर और आमरण अनशनके लिये बैठे हुए भूरिश्रवाका सात्यकिके द्वारा वध
१४४. सात्यकिके भूरिश्रवाद्वारा अपमानित होनेका कारण तथा वृष्णिवंशी वीरोंकी प्रशंसा
१४५. अर्जुनका जयद्रथपर आक्रमण, कर्ण और दुर्योधनकी बातचीत, कर्णके साथ अर्जुनका युद्ध और कर्णकी पराजय तथा सब योद्धाओंके साथ अर्जुनका घोर युद्ध
१४६. अर्जुनका अद्भुत पराक्रम और सिन्धुराज जयद्रथका वध
१४७. अर्जुनके बाणोंसे कृपाचार्यका मूर्च्छित होना, अर्जुनका खेद तथा कर्ण और सात्यकिका युद्ध एवं कर्णकी पराजय
१४८. अर्जुनका कर्णको फटकारना और वृषसेनके वधकी प्रतिज्ञा करना, श्रीकृष्णका अर्जुनको बधाई देकर उन्हें रणभूमिका भयानक दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिरके पास लेजाना
१४९. श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे विजयका समाचार सुनाना और युधिष्ठिरद्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति तथा अर्जुन, भीम एवं सात्यकिका अभिनन्दन
१५०. व्याकुल हुए. दुर्योधनका खेद प्रकट करते हुए. द्रोणाचार्यको उपालम्भ देना
१५१. द्रोणाचार्यका दुर्योधनको उत्तर और युद्धके लिये प्रस्थान
१५२. दुर्योधन और कर्णकी बातचीत तथा पुनः युद्धका आरम्भ
१५३. कौरव-पाण्डव-सेनाका युद्ध, दुर्योधन और युधिष्ठिरका संग्राम तथा दुर्योधनकी पराजय
१५४. रात्रियुद्धमें पाण्डव-सैनिकोंका द्रोणाचार्यपर आक्रमण और द्रोणाचार्यद्वारा उनका संहार
१५५. द्रोणाचार्यद्वारा शिबिका वध तथा भीमसेनद्वारा घुस्से और थप्पड़से कलिंगराजकुमारका एवं ध्रुव, जयरात तथा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मदका वध
१५६. सोमदत्त और सात्यकिका युद्ध, सोमदत्तकी पराजय, घटोत्कच और अश्वत्थामाका युद्ध और अश्वत्थामाद्वारा घटोत्कचके पुत्रका, एक अक्षौहिणी राक्षस-सेनाका तथा द्रुपदपुत्रोंका वध एवं पाण्डव सेनाकी पराजय
१५७. सोमदत्तकी मूर्च्छाभीमके द्वारा बाह्लीकका वध, धृतराष्ट्रके दस पुत्रों और शकुनिके सात रथियों एवं पाँच भाइयोंका संहार तथा द्रोणाचार्य और युधिष्ठिरके युद्धमें युधिष्ठिरकी विजय
१५८. दुर्योधन और कर्णकी बातचीत, कृपाचार्यद्वारा कर्णको फटकारना तथा कर्णद्वारा कृपाचार्यका अपमान
१५९. अश्वत्थामाका कर्णको मारनेके लिये उद्यत होना, दुर्योधनका उसे मनाना, पाण्डवों और पांचालोंका कर्णपर आक्रमण, कर्णका पराक्रम, अर्जुनके द्वारा कर्णकी पराजय तथा दुर्योधनका अश्वत्थामासे पांचालोंके वधके लिये अनुरोध
१६०. अश्वत्थामाका दुर्योधनको उपालम्भपूर्ण आश्वासन देकर पांचालोंके साथ युद्ध करते हुए धृष्टद्युम्न के रथसहित सारथिको नष्ट करके उसकी सेनाको भगाकर अद्भुत पराक्रम दिखाना
१६१. भीमसेन और अर्जुनका आक्रमण और कौरव सेनाका पलायन
१६२. सात्यकिद्वारा सोमदत्तका वध, द्रोणाचार्य और युधिष्ठिरका युद्ध तथा भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको द्रोणाचार्यसे दूर रहनेका आदेश
१६३. कौरवों और पाण्डवोंकी सेनाओंमें प्रदीपों (मशालों) का प्रकाश
१६४. दोनों सेनाओंका घमासान युद्ध और दुर्योधनका द्रोणाचार्यकी रक्षाके लिये सैनिकोंको आदेश
१६५. दोनों सेनाओंका युद्ध और कृतवर्माद्वारा युधिष्ठिरकी पराजय
१६६. सात्यकिके द्वारा भूरिका वध, घटोत्कच और अश्वत्थामाका घोर युद्ध तथा भीमके साथ दुर्योधनका युद्ध एवं दुर्योधनका पलायन
१६७. कर्णके द्वारा सहदेवकी पराजय, शल्यके द्वारा विराटके भाई शतानीकका वध और विराटकी पराजय तथा अर्जुनसे पराजित होकर अलम्बुषका पलायन
१६८. शतानीकके द्वारा चित्रसेनकी और वृषसेनके द्वारा द्रुपदकी पराजय तथा प्रतिविन्ध्य एवं दुःशासनका युद्ध
१६९. नकुलके द्वारा शकुनिकी पराजय तथा शिखण्डी और कृपाचार्यका घोर युद्ध
१७०. धृष्टद्युम्न और द्रोणाचार्यका युद्ध, धृष्टद्युम्नद्वारा द्रुमसेनका वध, सात्यकि और कर्णका युद्ध, कर्णकी दुर्योधनको सलाह तथा शकुनिका पाण्डव सेनापर आक्रमण
१७१. सात्यकिसे दुर्योधनकी, अर्जुनसे शकुनि और उलूककी तथा धृष्टद्युम्नसे कौरव-सेनाकी पराजय
१७२. दुर्योधनके उपालम्भसे द्रोणाचार्य और कर्णका घोर युद्ध, पाण्डव सेनाका पलायन, भीमसेनका सेनाको लौटाकर लाना और अर्जुनसहित भीमसेनका कौरवोंपर आक्रमण करना
१७३. कर्णद्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालोंकी पराजय युधिष्ठिरकी घबराहट तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनका घटोत्कचको प्रोत्साहन देकर कर्णके साथ युद्धके लिये भेजना
१७४. घटोत्कच और जटासुरके पुत्र अलम्बुषका घोर युद्ध तथा अलम्बुषका वध
१७५. घटोत्कच और उसके रथ आदिके स्वरूपका वर्णन तथा कर्ण और घटोत्कचका
१७६. अलायुधका युद्धस्थलमें प्रवेश तथा उसके स्वरूप और रथ आदिका वर्णन घोर संग्राम
१७७. भीमसेन और अलायुधका घोर युद्ध
१७८. दोनों सेनाओं में परस्पर घोर युद्ध और घटोत्कचके द्वारा अलायुधका वध एवं दुर्योधनका पश्चात्ताप
१७९. घटोत्कचका घोर युद्ध तथा कर्णके द्वारा चलायी हुई इन्द्रप्रदत्त शक्तिसे उसका वध
१८०. घटोत्कचके वधसे पाण्डवोंका शोक तथा श्रीकृष्णकी प्रसन्नता और उसका कारण
१८१. भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनको जरासंध आदि धर्मद्रोहियोंके वध करनेका कारण बताना
१८२. कर्णने अर्जुनपर शक्ति क्यों नहीं छोड़ी, इसके उत्तरमें संजयका धृतराष्ट्रसे और श्रीकृष्णका सात्यकिसे रहस्ययुक्त कथन
१८३. धृतराष्ट्रका पश्चात्ताप, संजयका उत्तर एवं राजा युधिष्ठिरका शोक और भगवान् श्रीकृष्ण तथा महर्षि व्यासद्वारा उसका निवारण
१८४. निद्रासे व्याकुल हुए उभयपक्षके सैनिकोंका अर्जुनके कहनेसे सो जाना और चन्द्रोदयके बाद पुनः उठकर युद्धमें लग जाना
१८५. दुर्योधनका उपालम्भ और द्रोणाचार्यका व्यंगपूर्ण उत्तर
१८६. पाण्डववीरोंका द्रोणाचार्यपर आक्रमण, द्रुपदके पौत्रों तथा द्रुपद एवं विराट आदिका वध, धृष्टद्युम्नकी प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
१८७. युद्धस्थलकी भीषण अवस्थाका वर्णन और नकुलके द्वारा दुर्योधनकी पराजय
१८८. दुःशासन और सहदेवका, कर्ण और भीमसेनका तथा द्रोणाचार्य और अर्जुनका घोर युद्ध
१८९. धृष्टद्युम्नका_दुःशासनको हराकर द्रोणाचार्यपर आक्रमण, नकुल सहदेवद्वारा उनकी रक्षा, दुर्योधन तथा सात्यकिका संवाद तथा युद्ध, कर्ण और भीमसेनका संग्राम और अर्जुनका कौरवोंपर आक्रमण
१९०. द्रोणाचार्यका घोर कर्म, ऋषियोंका द्रोणको अस्त्र त्यागनेका आदेश तथा अश्वत्थामाकी मृत्यु सुनकर द्रोणका जीवनसे निराश होना
१९१. द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्नका युद्ध तथा सात्यकिकी शूरवीरता और प्रशंसा
१९२. उभयपक्षके श्रेष्ठ महारथियोंका परस्पर युद्ध, धृष्टद्युम्नका आक्रमण, द्रोणाचार्यका अस्त्र त्यागकर योगधारणाके द्वारा ब्रह्मलोक-गमन और धृष्टद्युम्नद्वारा उनके मस्तकका उच्छेद
१९३. कौरव-सैनिकों तथा सेनापतियोंका भागना, अश्वत्थामाके पूछनेपर कृपाचार्यका उसे द्रोणवधका वृत्तान्त सुनाना
१९४. धृतराष्ट्रका प्रश्न
१९५. अश्वत्थामाके क्रोधपूर्ण उद्गार और उसके द्वारा नारायणास्त्रका प्राकट्य
१९६. कौरव सेनाका सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिरका अर्जुनसे कारण पूछना और अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाके क्रोध एवं गुरुहत्याके भीषण परिणामका वर्णन
१९७. भीमसेनके वीरोचित उद्गार और धृष्टघुम्नके द्वारा अपने कृत्यका समर्थन
१९८. सात्यकि और धृष्टद्युम्नका परस्पर क्रोधपूर्वक वाग्बाणोंसे लड़ना तथा भीमसेन, सहदेव और श्रीकृष्ण एवं युधिष्ठिरके प्रयत्नसे उनका निवारण
१९९. अश्वत्थामाके द्वारा नारायणास्त्रका प्रयोग, राजा युधिष्ठिरका खेद, भगवान् श्रीकृष्णके बताये हुए उपायसे सैनिकोंकी रक्षा, भीमसेनका वीरोचित उद्गार और उनपर उस अस्त्रका प्रबल आक्रमण
२००. श्रीकृष्णका भीमसेनको रथसे उतारकर नारायणास्त्रको शान्त करना, अश्वत्थामाका उसके पुनः प्रयोगमें अपनी असमर्थता बताना तथा अश्वत्थामाद्वारा धृष्टद्युम्नकी पराजय, सात्यकिका दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन - इन छः महारथियोंको भगा देना फिर अश्वत्थामाद्वारा मालव, पौरव और चेदिदेशके युवराजका वध एवं भीम और अश्वत्थामाका घोर युद्ध तथा पाण्डव-सेनाका पलायन
२०१. अश्वत्थामाके द्वारा आग्नेयास्त्रके प्रयोगसे एक अक्षौहिणी पाण्डव-सेनाका संहार, श्रीकृष्ण और अर्जुनपर उस अस्त्रका प्रभाव न होनेसे चिन्तित हुए अश्वत्थामाको व्यासजीका शिव और श्रीकृष्णकी महिमा बताना
२०२. व्यासजीका अर्जुनसे भगवान् शिवकी महिमा बताना तथा द्रोणपर्वके पाठ और श्रवणका फल