आश्रमवासिकपर्व ~ पंचदश पर्व
महाभारत के आश्रमवासिकपर्व में ३ उपपर्व, ३९ अध्याय एवम कुल १५०६ श्लोक हैं।
१. आश्रमवासपर्व
१. भाइयोंसहित युधिष्ठिर तथा कुन्ती आदि देवियोंके द्वारा धृतराष्ट्र और गान्धारीकी सेवा
२. पाण्डवोंका धृतराष्ट्र और गान्धारीके अनुकूल बर्ताव
३. राजा धृतराष्ट्रका गान्धारीके साथ वनमें जानेके लिये उद्योग एवं युधिष्ठिरसे अनुमति देनेके लिये अनुरोध तथा युधिष्ठिरसे और कुन्ती आदिका दुःखी होना
४. व्यासजीके समझानेसे युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको वनमें जानेके लिये अनुमति देना
५. धृतराष्ट्रके द्वारा युधिष्ठिरको राजनीतिका उपदेश
६. धृतराष्ट्रद्वारा राजनीतिका उपदेश
७. युधिष्ठिरको धृतराष्ट्रके द्वारा राजनीतिका उपदेश
८. धृतराष्ट्रका कुरुजांगल देशकी प्रजासे वनमें जानेके लिये आज्ञा माँगना
९. प्रजाजनोंसे धृतराष्ट्रकी क्षमा-प्रार्थना
१०. प्रजाकी ओरसे साम्बनामक ब्राह्मणका धृतराष्ट्रको सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना
११. धृतराष्ट्रका विदुरके द्वारा युधिष्ठिरसे श्राद्धके लिये धन माँगना, अर्जुनकी सहमति और भीमसेनका विरोध
१२. अर्जुनका भीमको समझाना और युधिष्ठिरका धृतराष्ट्रको यथेष्ट धन देनेकी स्वीकृति प्रदान करना
१३. विदुरका धृतराष्ट्रको युधिष्ठिरका उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना
१४. राजा धृतराष्ट्रके द्वारा मृत व्यक्तियोंके लिये श्राद्ध एवं विशाल दान-यज्ञका अनुष्ठान
१५. गान्धारीसहित धृतराष्ट्रका वनको प्रस्थान
१६. धृतराष्ट्रका पुरवासियोंको लौटाना और पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना
१७. कुन्तीका पाण्डवोंको उनके अनुरोधका उत्तर
१८. पाण्डवोंका स्त्रियोंसहित निराश लौटना, कुन्तीसहित गान्धारी और धृतराष्ट्र आदिका मार्ग में गंगा-तटपर निवास करना
१९. धृतराष्ट्र आदिका गंगातटपर निवास करके वहाँसे कुरुक्षेत्रमें जाना और शतयूपके आश्रमपर निवास करना
२०. नारदजीका प्राचीन राजर्षियोंकी तपः सिद्धिका दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्रकी तपस्याविषयक श्रद्धाको बढ़ाना तथा शतयूपके पूछनेपर धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गतिका भी वर्णन करना
२१. धृतराष्ट्र आदिके लिये पाण्डवों तथा पुरवासियोंकी चिन्ता
२२. माताके लिये पाण्डवोंकी चिन्ता, युधिष्ठिरकी वनमें जानेकी इच्छा, सहदेव और द्रौपदीका साथ जानेका उत्साह तथा रनिवास और सेनासहित युधिष्ठिरका वनको प्रस्थान
२३. सेनासहित पाण्डवोंकी यात्रा और उनका कुरुक्षेत्रमें पहुँचना
२४. पाण्डवों तथा पुरवासियोंका कुन्ती, गान्धारी और धृतराष्ट्रके दर्शन करना
२५. संजयका ऋषियोंसे पाण्डवों, उनकी पत्नियों तथा अन्यान्य स्त्रियोंका परिचय देना
२६. धृतराष्ट्र और युधिष्ठिरकी बातचीत तथा विदुरजीका युधिष्ठिरके शरीरमें प्रवेश
२७. युधिष्ठिर आदिका ऋषियोंके आश्रम देखना, कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्रके पास आकर बैठना, उन सबके पास अन्यान्य ऋषियोंसहित महर्षि व्यासका आगमन
२८. महर्षि व्यासका धृतराष्ट्रसे कुशल पूछते हुए विदुर और युधिष्ठिरकी धर्मरूपताका प्रतिपादन करना और उनसे अभीष्ट वस्तु माँगनेके लिये कहना
२. पुत्रदर्शनपर्व
२९. धृतराष्ट्रका मृत बान्धवोंके शोकसे दुःखी होना तथा गान्धारी और कुन्तीका व्यासजीसे अपने मरे हुए पुत्रोंके दर्शन करनेका अनुरोध
३०. कुन्तीका कर्णके जन्मका गुप्त रहस्य बताना और व्यासजीका उन्हें सान्त्वना देना
३१. व्यासजीके द्वारा धृतराष्ट्र आदिके पूर्वजन्मका परिचय तथा उनके कहने से सब लोगोंका गंगा-तटपर जाना
३२. व्यासजीके प्रभावसे कुरुक्षेत्रके युद्धमें मारे गये कौरव पाण्डववीरोंका गंगाजीके जलसे प्रकट होना
३३. परलोकसे आये हुए व्यक्तियोंका परस्पर राग-द्वेषसे रहित होकर मिलना और रात बीतने पर अदृश्य हो जाना, व्यासजीकी आज्ञासे विधवा क्षत्राणियोंका गंगाजीमें गोता लगाकर अपने-अपने पतिके लोकको प्राप्त करना तथा इस पर्वके श्रवणकी महिमा
३४. मरे हुए पुरुषोंका अपने पूर्व शरीरसे ही यहाँ पुनः दर्शन देना कैसे सम्भव है, जनमेजयकी इस शंकाका वैशम्पायनद्वारा समाधान
३५. व्यासजीकी कृपासे जनमेजयको अपने पिताका दर्शन प्राप्त होना
३६. व्यासजीकी आज्ञासे धृतराष्ट्र आदिका पाण्डवोंको विदा करना और पाण्डवोंका सदलबल हस्तिनापुरमें आना
३. नारदागमनपर्व
३७. नारदजीसे धृतराष्ट्र आदिके दावानलमें दग्ध हो जानेका हाल जानकर युधिष्ठिर आदिका शोक करना
३८. नारदजीके सम्मुख युधिष्ठिरका धृतराष्ट्र आदिके लौकिक अग्निमें दग्ध हो जानेका वर्णन करते हुए विलाप और अन्य पाण्डवोंका भी रोदन
३९. राजा युधिष्ठिरद्वारा धृतराष्ट्र गान्धारी और कुन्ती - इन तीनोंकी हड्डियोंको गंगामें प्रवाहित कराना तथा श्राद्धकर्म करना