महाभारत के विराटपर्व में ५ उपपर्व, ७२ अध्याय एवम कुल २०५० श्लोक हैं।

१. विराटनगरमें अज्ञातवास करनेके लिये पाण्डवोंकी गुप्त मन्त्रणा तथा युधिष्ठिरके द्वारा अपने भावी कार्यक्रमका दिग्दर्शन
२. भीमसेन और अर्जुनद्वारा विराटनगरमें किये जानेवाले अपने अनुकूल कार्योंका निर्देश
३. नकुल, सहदेव तथा द्रौपदीद्वारा अपने-अपने भावी कर्तव्योंका दिग्दर्शन
४. धौम्यका पाण्डवोंको राजाके यहाँ रहनेका ढंग बताना और सबका अपने-अपने अभीष्ट स्थानोंको जाना
५. पाण्डवोंका विराटनगरके समीप पहुँचकर श्मशानमें एक शमीवृक्षपर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना
६. युधिष्ठिरद्वारा दुर्गादिवीकी स्तुति और देवीका प्रत्यक्ष प्रकट होकर उन्हें वर देना
७. युधिष्ठिरका राजसभामें जाकर विराटसे मिलना और वहाँ आदरपूर्वक निवास
८. भीमसेनका राजा विराटकी सभामें प्रवेश और राजाके द्वारा आश्वासन पान
९. द्रौपदीका सैरन्ध्रीके वेशमें विराटके रनिवासमें जाकर रानी सुदेष्णासे वार्तालाप करना और वहाँ निवास पाना
१०. सहदेवका राजा विराटके साथ वार्तालाप और गौओंकी देखभालके लिये उनकी नियुक्ति
११. अर्जुनका राजा विराटसे मिलना और राजाके द्वारा कन्याओंको नृत्य आदिकी शिक्षा देनेके लिये उनको नियुक्त करना
१२. नकुलका विराटके अश्वोंकी देख-रेखमें नियुक्त होना
१३. भीमसेनके द्वारा जीमूत नामक विश्वविख्यात मल्लका वध
१४. कीचकका द्रौपदीपर आसक्त हो उससे प्रणय-याचना करना और द्रौपदीका उसे फटकारना
१५. रानी सुदेष्णाका द्रौपदीको कीचकके घर भेजना
१६. कीचकद्वारा द्रौपदीका अपमान
१७. द्रौपदीका भीमसेनके समीप जाना
१८. द्रौपदीका भीमसेनके प्रति अपने दुःखके उद्गार प्रकट करना
१९. पाण्डवोंके दुःखसे दुःखित द्रौपदीका भीमसेनके सम्मुख विलाप
२०. द्रौपदीद्वारा भीमसेनसे अपना दुःख निवेदन करना
२१. भीमसेन और द्रौपदीका संवाद
२२. कीचक और भीमसेनका युद्ध तथा कीचक वध
२३. उपकीचकोंका सैरन्ध्रीको बाँधकर श्मशान भूमिमें ले जाना और भीमसेनका उन सबको मारकर सैरन्ध्रीको छुड़ाना
२४. द्रौपदीका राजमहलमें लौटकर आना और बृहन्नला एवं सुदेष्णासे उसकी बातचीत
२५. दुर्योधनके पास उसके गुप्तचरोंका आना और उनका पाण्डवोंके विषयमें कुछ पता न लगा, यह बताकर कीचकवधका वृत्तान्त सुनाना
२६. दुर्योधनका सभासदोंसे पाण्डवोंका पता लगानेके लिये परामर्श तथा इस विषयमें कर्ण और दुःशासनकी सम्मति
२७. आचार्य द्रोणकी सम्मति
२८. युधिष्ठिरकी महिमा कहते हुए भीष्मकी पाण्डवोंके अन्वेषणके विषयमें सम्मति
२९. कृपाचार्यकी सम्मति और दुर्योधनका निश्चय
३०. सुशर्माके प्रस्तावके अनुसार त्रिगर्तों और कौरवोंका मत्स्यदेशपर धावा
३१. चारों पाण्डवोंसहित राजा विराटकी सेनाका युद्धके लिये प्रस्थान
३२. मत्स्य तथा त्रिगर्तदेशीय सेनाओंका परस्पर युद्ध
३३. सुशर्माका विराटको पकड़कर ले जाना, पाण्डवोंके प्रयत्नसे उनका छुटकारा, भीमद्वारा सुशर्माका निग्रह और युधिष्ठिरका अनुग्रह करके उसे छोड़ देना
३४. राजा विराटद्वारा पाण्डवोंका सम्मान, युधिष्ठिरद्वारा राजाका अभिनन्दन तथा विराटनगरमें राजाकी विजयघोषणा
३५. कौरवोंद्वारा उत्तर दिशाकी ओरसे आकर विराटकी गौओंका अपहरण और गोपाध्यक्षका उत्तरकुमारको युद्धके लिये उत्साह दिलाना
३६. उत्तरका अपने लिये सारथि ढूँढ़नेका प्रस्ताव, अर्जुनकी सम्मतिसे द्रौपदीका बृहन्नलाको सारथि बनानेके लिये सुझाव देना
३७. बृहन्नलाको सारथि बनाकर राजकुमार उत्तरका रणभूमिकी ओर प्रस्थान
३८. उत्तरकुमारका भय और अर्जुनका उसे आश्वासन देकर रथपर चढ़ाना
३९. द्रोणाचार्यद्वारा अर्जुनके अलौकिक पराक्रमकी प्रशंसा
४०. अर्जुनका उत्तरको शमीवृक्षसे अस्त्र उतारनेके लिये आदेश
४१. उत्तरका अर्जुनके आदेशके अनुसार शमीवृक्षसे पाण्डवोंके दिव्य धनुष आदि उतारना
४२. उत्तरका बृहन्नलासे पाण्डवोंके अस्त्र-शस्त्रोंके विषयमें प्रश्न करना
४३. बृहन्नलाद्वारा उत्तरको पाण्डवोंके आयुधोंका परिचय कराना
४४. अर्जुनका उत्तरकुमारसे अपना और अपने भाइयोंका यथार्थ परिचय देना
४५. अर्जुनद्वारा युद्धकी तैयारी, अस्त्र-शस्त्रोंका स्मरण, उनसे वार्तालाप तथा उत्तरके भयका निवारण
४६. उत्तरके रथपर अर्जुनको ध्वजकी प्राप्ति, अर्जुनका शंखनाद और द्रोणाचार्यका कौरवोंसे उत्पातसूचक अपशकुनोंका वर्णन
४७. दुर्योधनके द्वारा युद्धका निश्चय तथा कर्णकी उक्ति
४८. कर्णकी आत्मप्रशंसापूर्ण अहंकारोक्ति
४९. कृपाचार्यका कर्णको फटकारते हुए युद्धके विषयमें अपना विचार बताना
५०. अश्वत्थामाके उद्गार
५१. भीष्मजीके द्वारा सेनामें शान्ति और एकता बनाये रखनेकी चेष्टा तथा द्रोणाचार्य के द्वारा दुर्योधनकी रक्षाके लिये प्रयत्न
५२. पितामह भीष्मकी सम्मति
५३. अर्जुनका दुर्योधनकी सेनापर आक्रमण करके गौओंको लौटा लेना
५४. अर्जुनका कर्णपर आक्रमण, विकर्णकी पराजय, शत्रुतप और संग्रामजित्का वध, कर्ण और अर्जुनका युद्ध तथा कर्णका पलायन
५५. अर्जुनद्वारा कौरवसेनाका संहार और उत्तरका उनके रथको कृपाचार्यके पास ले जाना
५६. अर्जुन और कृपाचार्यका युद्ध देखनेके लिये देवताओंका आकाशमें विमानोंपर आगमन
५७. कृपाचार्य और अर्जुनका युद्ध तथा कौरवपक्षके सैनिकोंद्वारा कृपाचार्यको हटा ले जाना
५८. अर्जुनका द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और आचार्यका पलायन
५९. अश्वत्थामाके साथ अर्जुनका युद्ध
६०. अर्जुन और कर्णका संवाद तथा कर्णका अर्जुनसे हारकर भागना
६१. अर्जुनका उत्तरकुमारको आस्थासन तथा अर्जुनसे दुःशासन आदिकी पराजय
६२. अर्जुनका सब योद्धाओं और महारथियोंके साथ युद्ध
६३. अर्जुनपर समस्त कौरवपक्षीय महारथियोंका आक्रमण और सबका युद्धभूमिसे पीठ दिखाकर भागना
६४. अर्जुन और भीष्मका अद्भुत युद्ध तथा मूर्छित भीष्मका सारथिद्वारा रणभूमिसे हटाया जाना
६५. अर्जुन और दुर्योधनका युद्ध, विकर्ण आदि योद्धाओं सहित दुर्योधनका युद्धके मैदानसे भागना
६६. अर्जुनके द्वारा समस्त कौरवदलकी पराजय तथा कौरवोंका स्वदेशको प्रस्थान
६७. विजयी अर्जुन और उत्तरका राजधानीकी ओर प्रस्थान
६८. राजा विराटकी उत्तरके विषयमें चिन्ता, विजयी उत्तरका नगरमें प्रवेश, प्रजाओंद्वारा उनका स्वागत, विराटद्वारा युधिष्ठिरका तिरस्कार और क्षमा-प्रार्थना एवं उत्तरसे युद्धका समाचार पूछना
६९. राजा विराट और उत्तरकी विजयके विषयमें बातचीत
७०. अर्जुनका राजा विराटको महाराज युधिष्ठिरका परिचय देना
७१. विराटको अन्य पाण्डवोंका भी परिचय प्राप्त होना तथा विराटके द्वारा युधिष्ठिरको राज्य समर्पण करके अर्जुनके साथ उत्तराके विवाहका प्रस्ताव करना
७२. अर्जुनका अपनी पुत्रवधूके रूपमें उत्तराको ग्रहण करना एवं अभिमन्यु और उत्तराका विवाह