भीष्मपर्व ~ षष्ट पर्व
महाभारत के विराटपर्व में ५ उपपर्व, ७२ अध्याय एवम कुल २०५० श्लोक हैं।
१. जम्बूखण्डविनिर्माणपर्व
१. कुरुक्षेत्रमें उभय पक्षके सैनिकोंकी स्थिति तथा युद्धके नियमोंका निर्माण
२. वेदव्यासजीके द्वारा संजयको दिव्य दृष्टिका दान तथा भयसूचक उत्पातोंका वर्णन
३. व्यासजीके द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों तथा विजयसूचक लक्षणोंका वर्णन
४. धृतराष्ट्रके पूछनेपर संजयके द्वारा भूमिके महत्त्वका वर्णन
५. पंचमहाभूतों तथा सुदर्शनद्वीपका संक्षिप्त वर्णन
६. सुदर्शनके वर्ष, पर्वत, मेरुगिरि, गंगानदी तथा शशाकृतिका वर्णन
७. उत्तर कुरु, भद्राश्ववर्ष तथा माल्यवान्का वर्णन
८. रमणक, हिरण्यक, शृंगवान् पर्वत तथा ऐरावतवर्षका वर्णन
९. भारतवर्षकी नदियों, देशों तथा जनपदोंके नाम और भूमिका महत्त्व
१०. भारतवर्षमें युगोंके अनुसार मनुष्योंकी आयु तथा गुणों का निरूपण
२. भूमिपर्व
११. शाकद्वीपका वर्णन
१२. कुश, क्रौंच और पुष्कर आदि द्वीपोंका तथा राहु, सूर्य एवं चन्द्रमाके प्रमाणका वर्णन
३. श्रीमद्भगवद्गीतापर्व
१३. संजयका युद्धभूमिसे लौटकर धृतराष्ट्रको भीष्मकी मृत्युका समाचार सुनाना
१४. धृतराष्ट्रका विलाप करते हुए भीष्मजीके मारे जानेकी घटनाको विस्तारपूर्वक जाननेके लिये संजयसे प्रश्न करना
१५. संजयका युद्धके वृत्तान्तका वर्णन आरम्भ करना – दुर्योधनका दुःशासनको भीष्मकी रक्षाके लिये समुचित व्यवस्था करनेका आदेश
१६. दुर्योधनकी सेनाका वर्णन
१७. कौरवमहारथियोंका युद्धके लिये आगे बढ़ना तथा उनके व्यूह, वाहन और ध्वज आदिका वर्णन
१८. कौरव सेनाका कोलाहल तथा भीष्मके रक्षकों का वर्णन
१९. व्यूह-निर्माणके विषयमें युधिष्ठिर और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा वज्रव्यूहकी रचना, भीमसेनकी अध्यक्षतामें सेनाका आगे बढ़ना
२०. दोनों सेनाओं की स्थिति तथा कौरव सेनाका अभियान
२१. कौरव-सेनाको देखकर युधिष्ठिरका विषाद करना और 'श्रीकृष्णकी कृपासे ही विजय होती है' यह कहकर अर्जुनका उन्हें आश्वासन देना
२२. युधिष्ठिरकी रणयात्रा, अर्जुन और भीमसेनकी प्रशंसा तथा श्रीकृष्णका अर्जुनसे कौरव-सेनाको मारनेके लिये कहना
२३. अर्जुनके द्वारा दुर्गादिवीकी स्तुति, वरप्राप्ति और अर्जुनकृत दुर्गास्तवनके पाठकी महिमा
२४. सैनिकोंके हर्ष और उत्साहके विषयमें धृतराष्ट्र और संजयका संवाद
२५. (श्रीमद्भगवद्गीतायां प्रथमोऽध्यायः) दोनों सेनाओंके प्रधान प्रधान वीरों एवं शंख-ध्वनिका वर्णन तथा स्वजनवधके पापसे भयभीत हुए अर्जुनका विषाद
२६. (श्रीमद्भगवद्गीतायां द्वितीयोऽध्यायः) अर्जुनको युद्धके लिये उत्साहित करते हुए भगवान्के द्वारा नित्यानित्य वस्तुके विवेचनपूर्वक सांख्ययोग, कर्मयोग एवं स्थितप्रज्ञकी स्थिति और महिमाका प्रतिपादन
२७. (श्रीमद्भगवद्गीतायां तृतीयोऽध्यायः) ज्ञानयोग और कर्मयोग आदि समस्त साधनोंके अनुसार कर्तव्यकर्म करनेकी आवश्यकताका प्रतिपादन एवं स्वधर्मपालनकी महिमा तथा कामनिरोधके उपायका वर्णन
२८. (श्रीमद्भगवद्गीतायां चतुर्थोऽध्यायः) सगुण भगवान्के प्रभाव, निष्काम कर्मयोग तथा योगी महात्मा पुरुषोंके आचरण और उनकी महिमाका वर्णन करते हुए विविध यज्ञों एवं ज्ञानकी महिमाका वर्णन
२९. (श्रीमद्भगवद्गीतायां पञ्चमोऽध्यायः) सांख्ययोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तिसहित ध्यानयोगका वर्णन
३०. (श्रीमद्भगवद्गीतायां षष्ठोऽध्यायः) निष्काम कर्मयोगका प्रतिपादन करते हुए आत्मोद्धारके लिये प्रेरणा तथा मनोनिग्रहपूर्वक ध्यानयोग एवं योगभ्रष्टकी गतिका वर्णन
३१. (श्रीमद्भगवद्गीतायां सप्तमोऽध्यायः) ज्ञान-विज्ञान, भगवान्की व्यापकता, अन्य देवताओंकी उपासना एवं भगवान्को प्रभावसहित न जाननेवालोंकी निन्दा और जाननेवालोंकी महिमाका कथन
३२. (श्रीमद्भगवद्गीतायामष्टमोऽध्यायः) ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादिके विषयमें अर्जुनके सात प्रश्न और उनका उत्तर एवं भक्तियोग तथा शुक्ल और कृष्ण मार्गोंका प्रतिपादन
३३. (श्रीमद्भगवद्गीतायां नवमोऽध्यायः) ज्ञान-विज्ञान और जगत्की उत्पत्तिका, आसुरी और देवी सम्पदावालोंका, प्रभावसहित भगवान्के स्वरूपका, सकाम-निष्काम उपासनाका एवं भगवद्भक्तिकी महिमाका वर्णन
३४. (श्रीमद्भगवद्गीतायां दशमोऽध्यायः) भगवान्की विभूति और योगशक्तिका तथा प्रभावसहित भक्तियोगका कथन, अर्जुनके पूछनेपर भगवान्द्वारा अपनी विभूतियोंका और योगशक्तिका पुनः वर्णन
३५. (श्रीमद्भगवद्गीतायामेकादशोऽध्यायः) विश्वरूपका दर्शन करानेके लिये अर्जुनकी प्रार्थना, भगवान् और संजयद्वारा विश्वरूपका वर्णन, अर्जुनद्वारा भगवान्के विश्वरूपका देखा जाना, भयभीत हुए अर्जुनद्वारा भगवान्की स्तुति-प्रार्थना, भगवान्द्वारा विश्वरूप और चतुर्भुज-रूपके दर्शनकी महिमा और केवल अनन्यभक्तिसे ही भगवान्की प्राप्तिका कथन
३६. (श्रीमद्भगवद्गीतायां द्वादशोऽध्यायः) साकार और निराकारके उपासकोंकी उत्तमताका निर्णय तथा भगवत्प्राप्तिके उपायका एवं भगवत्प्राप्तिवाले पुरुषोंके लक्षणों का वर्णन
३७. (श्रीमद्भगवद्गीतायां त्रयोदशोऽध्यायः) ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ और प्रकृति-पुरुषका वर्णन
३८. (श्रीमद्भगवद्गीतायां चतुर्दशोऽध्यायः) ज्ञानकी महिमा और प्रकृति-पुरुषसे जगत्की उत्पत्तिका, सत्त्व, रज, तम तीनों गुणोंका, भगवत्प्राप्तिके उपायका एवं गुणातीत पुरुषके लक्षणोंका वर्णन
३९. (श्रीमद्भगवद्गीतायां पञ्चदशोऽध्यायः) संसारवृक्षका, भगवत्प्राप्तिके उपायका, जीवात्माका, प्रभावसहित परमेश्वरके स्वरूपका एवं क्षर, अक्षर और पुरुषोत्तमके तत्त्वका वर्णन
४०. (श्रीमद्भगवद्गीतायां षोडशोऽध्यायः) फलसहित दैवी और आसुरी सम्पदाका वर्णन तथा शास्त्रविपरीत आचरणोंको त्यागने और शास्त्रके अनुकूल आचरण करनेके लिये प्रेरणा
४१. (श्रीमद्भगवद्गीतायां सप्तदशोऽध्यायः) श्रद्धाका और शास्त्रविपरीत घोर तप करनेवालोंका वर्णन, आहार, यज्ञ, तप और दानके पृथक्-पृथक् भेद तथा ॐ, तत्, सत्के प्रयोगकी व्याख्या
४२. (श्रीमद्भगवद्गीतायामष्टादशोऽध्यायः) त्यागका, सांख्यसिद्धान्तका, फलसहित वर्ण-धर्मका, उपासनासहित ज्ञाननिष्ठाका, भक्तिसहित निष्काम कर्मयोगका एवं गीताके माहात्म्यका वर्णन
४. भीष्मवधपर्व
४३. गीताका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरका भीष्म, द्रोण कृप और शल्यसे अनुमति लेकर युद्धके लिये तैयार होना
४४. कौरव-पाण्डवोंके प्रथम दिनके युद्धका आरम्भ
४५. उभयपक्षके सैनिकोंका द्वन्द्ध-युद्ध
४६. कौरव पाण्डव-सेनाका घमासान युद्ध
४७. भीष्मके साथ अभिमन्युका भयंकर युद्ध, शल्यके द्वारा उत्तरकुमारका वध और श्वेतका पराक्रम
४८. श्वेतका महाभयंकर पराक्रम और भीष्मके द्वारा उसका वध
४९. शंखका युद्ध, भीष्मका प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिनके युद्धकी समाप्ति
५०. युधिष्ठिरकी चिन्ता, भगवान् श्रीकृष्णद्वारा आश्वासन धृष्टद्युम्नका उत्साह तथा द्वितीय दिनके युद्धके लिये क्रौंचारुणव्यूहका निर्माण
५१. कौरव सेनाकी व्यूह रचना तथा दोनों दलोंमें शंखध्वनि और सिंहनाद
५२. भीष्म और अर्जुनका युद्ध
५३. धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्यका युद्ध
५४. भीमसेनका कलिंगों और निषादोंसे युद्ध, भीमसेनके द्वारा शक्रदेव, भानुमान् और केतुमान्का वध तथा उनके बहुत-से सैनिकोंका संहार
५५. अभिमन्यु और अर्जुनका पराक्रम तथा दूसरे दिनके युद्धकी समाप्ति
५६. तीसरे दिन - कौरव पाण्डवोंकी व्यूह रचना तथा युद्धका आरम्भ
५७. उभयपक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध
५८. पाण्डव-वीरोंका पराक्रम, कौरव सेनामें भगदड़ तथा दुर्योधन और भीष्मका संवाद
५९. भीष्मका पराक्रम, श्रीकृष्णका भीष्मको मारनेके लिये उद्यत होना, अर्जुनकी प्रतिज्ञा और उनके द्वारा कौरव सेनाकी पराजय, तृतीय दिवसके युद्धकी समाप्ति
६०. चौथे दिन - दोनों सेनाओंका व्यूह निर्माण तथा भीष्म और अर्जुनका द्वैरथ-युद्ध
६१. अभिमन्युका पराक्रम और धृष्टद्युम्नद्वारा शलके पुत्रका वध
६२. धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्षके वीरोंका युद्ध तथा भीमसेनके द्वारा गजसेनाका संहार
६३. युद्धस्थलमें प्रचण्ड पराक्रमकारी भीमसेनका भीष्मके साथ युद्ध तथा सात्यकि और भूरिश्रवाकी मुठभेड़
६४. भीमसेन और घटोत्कचका पराक्रम, कौरवोंकी पराजय तथा चौथे दिनके युद्धकी समाप्ति
६५. धृतराष्ट्र-संजय-संवादके प्रसंगमें दुर्योधनके द्वारा पाण्डवोंकी विजयका कारण पूछनेपर भीष्मका ब्रह्माजीके द्वारा की हुई भगवत्-स्तुतिका कथन
६६. नारायणावतार श्रीकृष्ण एवं नरावतार अर्जुनकी महिमाका प्रतिपादन
६७. भगवान् श्रीकृष्णकी महिमा
६८. ब्रह्मभूतस्तोत्र तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महत्ता
६९. कौरवोंद्वारा मकरव्यूह तथा पाण्डवोंद्वारा श्येन-व्यूहका निर्माण एवं पाँचवें दिन के युद्धका आरम्भ
७०. भीष्म और भीमसेनका घमासान युद्ध
७१. भीष्म, अर्जुन आदि योद्धाओंका घमासान युद्ध
७२. दोनों सेनाओंका परस्पर घोर युद्ध
७३. विराट-भीष्म, अश्वत्थामा-अर्जुन, दुर्योधन-भीमसेन तथा अभिमन्यु और लक्ष्मणके द्वन्द्व-युद्ध
७४. सात्यकि और भूरिश्रवाका युद्ध, भूरिश्रवाद्वारा सात्यकिके दस पुत्रोंका वध, अर्जुनका पराक्रम तथा पाँचवें दिनके युद्धका उपसंहार
७५. छठे दिनके युद्धका आरम्भ, पाण्डव तथा कौरव सेनाका क्रमशः मकरव्यूह एवं क्रौंचव्यूह बनाकर युद्धमें प्रवृत्त होना
७६. धृतराष्ट्रकी चिन्ता
७७. भीमसेन, धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्यका पराक्रम
७८. उभय पक्षकी सेनाओंका संकुलयुद्ध
७९. भीमसेनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय, अभिमन्यु और द्रौपदीपुत्रोंका धृतराष्ट्रपुत्रोंके साथ युद्ध तथा छठें दिनके युद्धकी समाप्ति
८०. भीष्मद्वारा दुर्योधनको आश्वासन तथा सातवें दिनके युद्धके लिये कौरव-सेनाका प्रस्थान
८१. सातवें दिनके युद्धमें कौरव पाण्डव सेनाओंका मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष
८२. श्रीकृष्ण और अर्जुनसे डरकर कौरव सेनामें भगदड़, द्रोणाचार्य और विराटका युद्ध, विराट-पुत्र शंखका वध, शिखण्डी और अश्वत्थामाका युद्ध, सात्यकिके द्वारा अलम्बुषकी पराजय, धृष्टद्युम्नके द्वारा दुर्योधनकी हार तथा भीमसेन और कृतवर्माका युद्ध
८३. इरावान्के द्वारा विन्द और अनुविन्दकी पराजय, भगदत्तसे घटोत्कचका हारना तथा मद्रराजपर नकुल और सहदेवकी विजय
८४. युधिष्ठिरसे राजा श्रुतायुका पराजित होना, युद्धमें चेकितान और कृपाचार्यका मूर्छित होना, भूरिश्रवासे धृष्टकेतुका और अभिमन्युसे चित्रसेन आदिका पराजित होना एवं सुशर्मा आदिसे अर्जुनका युद्धारम्भ
८५. अर्जुनका पराक्रम, पाण्डवोंका भीष्मपर आक्रमण, युधिष्ठिरका शिखण्डीको उपालम्भ और भीमका पुरुषार्थ
८६. भीष्म और युधिष्ठिरका युद्ध, धृष्टद्युम्न और सात्यकिके साथ विन्द और अनुविन्दका संग्राम, द्रोण आदिका पराक्रम और सातवें दिनके युद्धकी समाप्ति
८७. आठवें दिन व्यूहबद्ध कौरव पाण्डव-सेनाओंकी रणयात्रा और उनका परस्पर घमासान युद्ध
८८. भीष्मका पराक्रम, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके आठ पुत्रोंका वध तथा दुर्योधन और भीष्मकी युद्धविषयक बातचीत
८९. कौरव-पाण्डव-सेनाका घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार
९०. इरावान्के द्वारा शकुनिके भाइयोंका तथा राक्षस अलम्बुषके द्वारा इरावान्का वध
९१. घटोत्कच और दुर्योधनका भयानक युद्ध
९२. घटोत्कचका दुर्योधन एवं द्रोण आदि प्रमुख वीरोंके साथ भयंकर युद्ध
९३. घटोत्कचकी रक्षाके लिये आये हुए भीम आदि शूरवीरोंके साथ कौरवोंका युद्ध और उनका पलायन
९४. दुर्योधन और भीमसेनका एवं अश्वत्थामा और राजा नीलका युद्ध तथा घटोत्कचकी मायासे मोहित होकर कौरव सेनाका पलायन
९५. दुर्योधनके अनुरोध और भीष्मजीकी आज्ञासे भगदत्तका घटोत्कच, भीमसेन और पाण्डव-सेनाके साथ घोर युद्ध
९६. इरावान्के वधसे अर्जुनका दुःखपूर्ण उद्गार, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके नौ पुत्रोंका वध, अभिमन्यु और अम्बष्ठका युद्ध, युद्धकी भयानक स्थितिका वर्णन तथा आठवें दिनके युद्धका उपसंहार
९७. दुर्योधनका अपने मन्त्रियोंसे सलाह करके भीष्मसे पाण्डवोंको मारने अथवा कर्णको युद्धके लिये आज्ञा देनेका अनुरोध करना
९८. भीष्मका दुर्योधनको अर्जुनका पराक्रम बताना और भयंकर युद्धके लिये प्रतिज्ञा करना तथा प्रातःकाल दुर्योधनके द्वारा भीष्मकी रक्षाकी व्यवस्था
९९. नवें दिनके युद्धके लिये उभयपक्षकी सेनाओंकी व्यूह रचना और उनके घमासान युद्धका आरम्भ तथा विनाशसूचक उत्पातोंका वर्णन
१००. द्रौपदीके पाँचों पुत्रों और अभिमन्युका राक्षस अलम्बुषके साथ घोर युद्ध एवं अभिमन्युके द्वारा नष्ट होती हुई कौरव सेनाका युद्ध भूमिसे पलायन
१०१. अभिमन्युके द्वारा अलम्बुषकी पराजय, अर्जुनके साथ भीष्मका तथा कृपाचार्य, अश्वत्थामा और द्रोणाचार्यके साथ सात्यकिका युद्ध
१०२. द्रोणाचार्य और सुशर्माके साथ अर्जुनका युद्ध तथा भीमसेनके द्वारा गजसेनाका संहार
१०३. उभय पक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध और रक्तमयी रणनदीका वर्णन
१०४. अर्जुनके द्वारा त्रिगर्तोंकी पराजय, कौरव-पाण्डव सैनिकोंका घोर युद्ध, अभिमन्युसे चित्रसेनकी, द्रोणसे द्रुपदकी और भीमसेनसे बाह्लीककी पराजय तथा सात्यकि और भीष्मका युद्ध
१०५. दुर्योधनका दुःशासनको भीष्मकी रक्षाके लिये आदेश, युधिष्ठिर और नकुल-सहदेवके द्वारा शकुनिकी घुड़सवार सेनाकी पराजय तथा शल्यके साथ उन सबका युद्ध
१०६. भीष्मके द्वारा पराजित पाण्डव सेनाका पलायन और भीष्मको मारनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णको अर्जुनका रोकना
१०७. नवें दिनके युद्धकी समाप्ति, रातमें पाण्डवोंकी गुप्त मन्त्रणा तथा श्रीकृष्णसहित पाण्डवोंका भीष्मसे मिलकर उनके वधका उपाय जानना
१०८. दसवें दिन उभयपक्षकी सेनाका रणके लिये प्रस्थान तथा भीष्म और शिखण्डीका समागम एवं अर्जुनका शिखण्डीको भीष्मका वध करनेके लिये उत्साहित करना
१०९. भीष्म और दुर्योधनका संवाद तथा भीष्मके द्वारा लाखों सैनिकोंका संहार
११०. अर्जुनके प्रोत्साहनसे शिखण्डीका भीष्मपर आक्रमण और दोनों सेनाओंके प्रमुख वीरोंका परस्पर युद्ध तथा दुःशासनका अर्जुनके साथ घोर
१११. कौरव-पाण्डवपक्षके प्रमुख महारथियोंके द्वन्द्व-युद्धका वर्णन युद्ध
११२. द्रोणाचार्यका अश्वत्थामाको अशुभ शकुनोंकी सूचना देते हुए उसे भीष्मकी रक्षा के लिये धृष्टद्युम्नसे युद्ध करनेका आदेश देना
११३. कौरवपक्षके दस प्रमुख महारथियोंके साथ अकेले घोर युद्ध करते हुए भीमसेनका अद्भुत पराक्रम
११४. कौरवपक्षके प्रमुख महारथियोंके साथ युद्धमें भीमसेन और अर्जुनका अद्भुत पुरुषार्थ
११५. भीष्मके आदेश युधिष्ठिरका उनपर आक्रमण तथा कौरव पाण्डव सैनिकोंका भीषण युद्ध पराक्रम
११६. कौरव-पाण्डव महारथियोंके द्वन्द्व-युद्धका वर्णन तथा भीष्मका
११७. उभय पक्षकी सेनाओंका युद्ध, दुःशासनका पराक्रम तथा अर्जुनके द्वारा भीष्मका मूर्च्छित होना
१३८. भीष्मका अद्भुत पराक्रम करते हुए पाण्डव-सेनाका भीषण संहार
३९९. कौरवपक्षके प्रमुख महारथियोंद्वारा सुरक्षित होनेपर भी अर्जुनका भीष्मको रथसे गिराना, शरशय्यापर स्थित भीष्मके समीप हंसरूपधारी ऋषियोंका आगमन एवं उनके कथनसे भीष्मका उत्तरायणकी प्रतीक्षा करते हुए प्राण धारण करना
१२०. भीष्मजीकी महत्ता तथा अर्जुनके द्वारा भीष्मको तकिया देना एवं उभय पक्षकी सेनाओंका अपने शिविरमें जाना और श्रीकृष्ण-युधिष्ठिर संवाद
१२१. अर्जुनका दिव्य जल प्रकट करके भीष्मजीकी प्यास बुझाना तथा भीष्मजीका अर्जुनकी प्रशंसा करते हुए दुर्योधनको संधिके लिये समझाना
१२२. भीष्म और कर्णका रहस्यमय संवाद